पश्चिम बंगाल में विभिन्न जाति, धर्म और प्रदेशों के लोग रहते हैं. उनकी अपनी अपनी भाषाएं हैं. पश्चिम बंगाल की आधिकारिक भाषा बांग्ला है. यह प्रदेश में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. लेकिन यहां हिंदी भी बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही है. खासकर शहरी इलाकों में.
इन दिनों हिंदी को लेकर तमिलनाडु में सरकार आर या पार की मुद्रा में है. तमिलनाडु सरकार थ्री लैंग्वेज पॉलिसी को लेकर विरोध जता चुकी है. मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने इसे हिंदी थोपने की कोशिश करार दिया था. मुंबई में RSS नेता भैया जी जोशी के एक बयान ने महाराष्ट्र में भी इस मसले को गर्मा दिया है. भैया जी जोशी ने कहा था कि मुंबई की कोई एक भाषा नहीं है. इसलिए मुंबई आने या यहां रहने के लिए मराठी सीखने की जरूरत नहीं है. उनके इस बयान के बाद उद्धव ठाकरे ने उन पर कार्रवाई की मांग की है.
हालांकि महाराष्ट्र में विवाद बढते देखकर भैया जी जोशी ने सफाई दी थी कि उनके बयान को गलत समझ गया. उन्होंने बाद में एक अन्य बयान में कहा कि उनके बयान से कुछ गलतफहमी हो गई है. वह विविध भाषाओं के सह अस्तित्व को लेकर बात कर रहे थे. खैर हिंदी को लेकर विवाद दक्षिण के कुछ राज्यों में जरूर देखा जा रहा है. क्या पश्चिम बंगाल में भी सरकार हिंदी को लेकर बेरुखी अपना रही है?
यह सवाल उठना लाजिमी है. क्योंकि बंगाल में बांग्ला भाषा सरकार की आधिकारिक भाषा है और यहां सबसे ज्यादा बांग्ला भाषा ही बोली जाती है. विभिन्न प्रदेशों से बंगाल के विभिन्न शहरों में रोजी रोटी कमाने आए और यहीं बस गए लोग भी काम चलाऊ बांग्ला बोल लेते हैं. वे बरसों से यहां रह रहे हैं. बंगाल में बंगाल सरकार पहले ही कह चुकी है कि वह बांग्ला के अलावा सभी भाषाओं का सम्मान करती है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अलग-अलग समुदाय के लोगों में या तो बांग्ला या फिर हिंदी में बात करती है.
इसमें कोई शक नहीं है कि वार्म मोर्चा की सरकार के समय हिंदी का उतना सम्मान नहीं था. जितना कि आज टीएमसी की सरकार में हिंदी का सम्मान बढा है. वाम मोर्चा की सरकार ने हिंदी को हाशिए पर डाल दिया गया था. लेकिन आज यह स्थिति नहीं है. तृणमूल कांग्रेस की सरकार बनने के बाद हिंदी के प्रति सरकार का सम्मान जरूर दिखाई देता है. दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के जैसा बंगाल में हिंदी के प्रति वह रवैया नहीं देखा जा रहा है. ममता बनर्जी से लेकर तृणमूल कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने भी हिंदी को सम्मान दिया है.
हाल ही में थ्री लैंग्वेज पॉलिसी पर तृणमूल कांग्रेस के सांसद सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा है कि हिंदी हमारे देश की राष्ट्रीय भाषा है और सबको इसका सम्मान करना चाहिए. उन्होंने यहां तक कहा कि हिंदी भाषा महान है और इसलिए यह देश की मातृभाषा होनी चाहिए. अगर हिंदी की बात करें तो बंगाल में हिंदी को लेकर कुछ प्रोत्साहन मूलक काम भी हुए हैं.
इनमें हिंदी अकादमी की स्थापना, हिंदी स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय खुलना, माध्यमिक स्तर का हिंदी स्कूलों में प्रश्न पत्र भी हिंदी में छपने शुरू हो गए हैं. इसके अलावा पार्टी स्तर पर भी टीएमसी का अपना हिंदी प्रकोष्ठ भी है. परंतु इसको कार्यकारी तरीके से लागू नहीं किया जाता है. हिंदी के सम्मान को लेकर यहां औपचारिकताएं ज्यादा देखी जाती है. जिस तरह से कोलकाता, सिलीगुड़ी, मालदा आदि शहरों में हिंदी भाषियों की संख्या बढ़ी है, उसे देखते हुए यहां सरकार को कुछ बड़े और ठोस कदम उठाने की जरूरत है.
फिर भी राहत की बात यह है कि दक्षिण भारतीय राज्यों की तरह यहां हिंदी का अपमान नहीं होता और हिंदी को जरूर प्रोत्साहन मिल रहा है. हाल के वर्षों में बंगाल में हिंदी भाषी मतदाताओं की संख्या भी बढ़ी है, जो सरकार के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसलिए किसी भी सरकार के लिए यहां के हिंदी वोटरों को ठुकराना आसान नहीं है. अगर हिंदी भाषी लोगों के सम्मान में सरकार कुछ कदम और आगे बढ़ाए,तो हिंदी भाषी भी सरकार के प्रति समर्पण भाव से जुड़ेंगे, इसमें कोई दो राय नहीं है.
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