सिलीगुड़ी में खटालों को लेकर निगम प्रशासन और खटाल मालिकों के बीच तनातनी चलती रहती है. सिलीगुड़ी नगर निगम प्रशासन का मानना है कि नदियों के जल प्रदूषण और गंदगी के लिए खटाल जिम्मेवार हैं. सिलीगुड़ी में अधिकांश खटाल महानंदा नदी के तट पर स्थित हैं.
गंगानगर, संतोषी नगर, विवेकानंद ग्वाला पट्टी, कुली पाडा,गुरुंग बस्ती, समर नगर और अनेक इलाकों में अनेक खटाल वर्षों से चल रहे हैं. हालांकि इनमें से अधिकांश खटाल पूर्व के प्रशासनिक निर्देश और सख्ती के बाद अन्यत्र स्थानांतरित हो गए हैं. या फिर खटाल मालिकों ने उसे बंद कर दिया है. लेकिन अभी भी काफी संख्या में नदी के तट पर खटाल चल रहे हैं.
बरसात के समय इन खटालों के कारण जल प्रदूषण, परिवेश प्रदूषण और बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. जब जब कोई असामान्य स्थिति उत्पन्न होती है, सिलीगुड़ी नगर निगम खटाल हटाने का अभियान शुरू कर देती है. खटाल मालिकों को नोटिस दिया जाता है. लेकिन खटाल मालिकों की तरफ से नोटिस का या तो कोई जवाब नहीं दिया जाता या फिर कहा जाता है कि वर्षों से खटाल चल रहा है. ऐसे में खटालों को अन्यत्र स्थानांतरित करना संभव नहीं है. प्रशासन खटाल मालिकों को अन्यत्र जगह भी नहीं दे पा रहा है.
अब एक बार फिर से नदी के तट से खटाल हटाओ अभियान शुरू करने की सिलीगुड़ी नगर निगम प्रशासन के द्वारा योजना बनाई जा रही है. आज सिलीगुड़ी नगर निगम के सभागार में पार्षदों की बैठक में डिप्टी मेयर रंजन सरकार ने संकेत दिया है कि महानंदा नदी के किनारे चल रहे खटाल मालिकों को NGT के नियमों का हर हालत में पालन करना होगा.उन्हें नदी के तट से खटाल हटाने होंगे. अन्यथा प्रशासन खटाल मालिकों के खिलाफ सख्ती से पेश आएगा. रंजन सरकार ने कहा है कि खटाल मालिकों की जमीन से खटाल हटा दिया जाएगा. इसलिए खटाल मालिक स्वयं ही आगे बढ़कर खटाल हटा ले.
उन्होंने चेतावनी दी है कि नदी में एक भी खटाल नहीं रहना चाहिए, अन्यथा खटाल मालिकों को कानूनी कार्रवाई का सामना करना होगा. दूसरी तरफ स्थिति यह है कि खटाल मालिक लगभग 50-60 सालो से नदी के तट खटाल चला रहे हैं. उनका कहना है कि प्रशासन ने इतने समय तक उन्हें खटाल चलाने क्यों दिया और अब जब उनके पास अन्यत्र जमीन उपलब्ध नहीं है, ऐसे में वह खटाल को अन्यत्र कैसे स्थानांतरित कर पाएंगे. या तो प्रशासन उन्हें आसपास में जमीन उपलब्ध कराए अन्यथा वे मजबूर हैं.
आपको बताते चलें कि यह कोई पहला मामला नहीं है. पिछले कई सालों से ऐसा ही होता आया है. वाममोर्चा शासित निगम बोर्ड में भी पूर्व मेयर अशोक भट्टाचार्य ने सिलीगुड़ी के सभी खटाल मालिकों से खटाल हटाने की अपील की थी. उनकी अपील का कोई असर नहीं पड़ा. इसके बाद प्रशासन ने सख्ती दिखाई तो खटाल मालिक भी अड गए. बाद में यह मामला ठंडे बस्ते में पड़ गया.
तृणमूल शासित बोर्ड मे मेयर गौतम देव ने भी इस मुद्दे को जोर-जोर से उठाया. उनकी चेतावनी और कानूनी कार्रवाई की धमकी के बाद बस इतना फर्क पड़ा कि नदी किनारे स्थित कुछ खटाल हटा दिए गए, जिसे प्रशासन ने यह मान लिया कि खटाल मालिक स्वेच्छा से खटाल हटा रहे हैं. लेकिन उस घटना के बाद खटाल मालिकों ने भी इस पर ज्यादा तवज्जो नहीं दी.
आज भी महानंदा समेत दूसरी नदियों नदी के तट पर कई खटाल पहले की तरह ही चल रहे हैं. इन खटालों के कारण नदी का जल प्रदूषित होता है. एनजीटी ने पहले ही प्रशासन को निर्देश दिया है कि नदी के तट पर खटाल नहीं होना चाहिए, प्रशासन यह सुनिश्चित करे. सिलीगुड़ी नगर निगम प्रशासन हर बार एनजीटी के आदेश की दुहाई देता है और खटाल मालिकों से अपना खटाल हटाने की अपील करता है.
एक बार फिर से सिलीगुड़ी नगर निगम ने अपने सख्त तेवर दिखाए है. सिलीगुड़ी नगर निगम के डिप्टी मेयर रंजन सरकार के इस बयान के बाद यह देखना होगा कि खटाल मालिक नदी किनारे से अपना खटाल हटाते हैं या नहीं. यह भी बताते चलें कि पूर्व में ही सिलीगुड़ी नगर निगम प्रशासन के द्वारा खटाल मालिकों को खटाल हटाने के लिए कई बार नोटिस दिया जा चुका है.