May 7, 2024
Sevoke Road, Siliguri
उत्तर बंगाल लाइफस्टाइल सिलीगुड़ी

कौन सुनेगा तिरहाना चाय बागान के श्रमिकों की फरियाद!

तन ढकने को साबूत कपड़े नहीं… मुर्गी के दरबों जैसे मकान… जहां बरसात का पानी उनके सर पर गिरता है. जंगल में रहने वाले ये श्रमिक प्राकृतिक विपदाओं के साथ-साथ जंगली जानवरों से भी जूझते रहते हैं. बागान उनका मंदिर है और वह बागान के भक्त हैं. लेकिन मंदिर में अब भक्त को प्रसाद नहीं मिल रहा है… किससे फरियाद करें वह?

छोटे छोटे बच्चे हैं. उन्हें रोटी चाहिए. पढ़ने के लिए किताब और कापी चाहिए. नए कपड़े चाहिए. दीवाली और काली पूजा से लेकर छठ पूजा तक सर पर है, लेकिन उनकी जेब में पैसे नहीं है. कैसे मनेगी दिवाली और काली पूजा… कैसे मनाएंगे छठ पूजा? अब तो भगवान ही मालिक है. लगता है कि पूजा से पहले नहीं मिलेगा बोनस… नारे जरूर लग रहे हैं, मालिक मैनेजर मुर्दाबाद… 19% बोनस देना होगा! परंतु यह सब झूठ है. कहीं ना कहीं उनके दिल में चल रहा है. क्योंकि अभी तक बागान मालिक पक्ष सामने नहीं आया है. मैनेजर बेचारा क्या करे. उसे घेर कर बैठे हैं जो!

मैनेजर लाचार है. उसके हाथ में कुछ भी नहीं है. वह सिर्फ श्रमिकों की आवाज सुन सकता है और ज्यादा से ज्यादा मालिक पक्ष को बता सकता है. मालिक पक्ष ने श्रमिकों को 22 तारीख को बैठक के लिए बुलाया है. लेकिन उन्हें क्या पता कि उससे पहले दीपावली, काली पूजा और छठ पूजा है. कहां से आएंगे पैसे… मालिक ने तो फरमान जारी कर दिया. कहते हैं तिरहाना चाय बागान के श्रमिक- हम लोगों ने एक मीटिंग करके बागान मालिक को बैठक में बुलाया. लेकिन वह नहीं आए. बागान मालिक की ओर से कहा जा रहा है कि इतनी जल्दी मीटिंग बुलाने से समय की कमी होती है. और जरूरी नहीं है कि उस समय हम फुरसत में हों.

तिरहाना चाय बागान के श्रमिक 19% बोनस की मांग कर रहे हैं. जबकि मालिक पक्ष पर 18% बोनस देने के लिए दबाव है. श्रमिक सिर्फ इतना चाहते हैं कि मालिक पक्ष फिलहाल 18% बोनस का भुगतान करे और शेष एक प्रतिशत पूजा के बाद भुगतान करे. इससे कम से कम उनका पूजा का खर्च तो निकल जाएगा. यूनियन श्रमिकों के साथ है. श्रमिक कुछ गलत नहीं कह रहे हैं. अभी पैसे देने से उनका पूजा का बाजार होगा. पैसे की इस समय उन्हें सख्त जरूरत है. छोटे-छोटे बच्चे हैं. दीपावली पर उनके लिए नए कपड़े लेना है. छठ पूजा पर खर्च होगा. महाजन उधार देगा नहीं. क्योंकि श्रमिकों की हालत उधार लेने लायक भी नहीं है.

बहुत कम पैसे में गुजारा करते हैं चाय बागानों के श्रमिक. महीने के 6-7 हजार कमाने वाले श्रमिकों का पैसा खाने-पीने और बच्चों की पढ़ाई में ही खत्म हो जाता है. हर महीने तंगी रहती है. बड़ी मुश्किल से जीना पड़ता है. एक बार बोनस की रकम मिलने से उन्हें उसी तरह की खुशी होती है, जैसे लॉटरी मिलने पर किसी इंसान को खुशी मिलती है. यही तो वह मांग कर रहे हैं.दुर्गा पूजा बीत गई. अब दीपावली और काली पूजा भी बीतेगी. फिर छठ पूजा भी बीत जाएगी. बागान मालिक को पैसे तो देने हैं. क्यों नहीं श्रमिकों की माली हालत को देखते हुए अभी भुगतान कर दे.

लेकिन मालिक के कानों में उनकी आवाज नहीं जा रही है. श्रमिकों ने भी फैसला कर लिया है. अगर मालिक ने उनकी आवाज नहीं सुनी तो वे कंपनी की चाय पत्ती बेच देंगे. फिर जो होगा देखा जाएगा. श्रमिकों की आंखों में आक्रोश है. लेकिन वे करें तो क्या करें. कोई उनकी फरियाद सुनने वाला नहीं है. दो-तीन महीने पहले से ही यह संग्राम चल रहा है. गनीमत है कि दूसरे चाय बागानों की तरह मालिक फरार नहीं हुआ है. इसलिए कहीं ना कहीं एक उम्मीद भी है. उनकी उम्मीद इस बात से बढ़ गई है कि मलिक पक्ष की ओर से एक सकारात्मक जवाब मिला है. मलिक पक्ष उन्हें 18% बोनस देने के लिए तैयार है. जबकि बाकी एक प्रतिशत होली से पहले भुगतान करेगा. हालांकि अभी तक उन्हें कोई लिखित जानकारी नहीं दी गई है. बहरहाल वह दिल से यही प्रार्थना कर रहे हैं कि उनकी उम्मीद को झटका ना लगे… क्योंकि चाय बागानों में कभी भी कुछ हो सकता है. इसका इतिहास रहा है. जब तक पैसे हाथ में नहीं आ जाते, तब तक दिल में धुकधुकी बनी रहेगी… पहाड़ के चाय बागानों की यही कहानी है… यही उनका सच है!

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