‘अगर राजस्थान कर सकता है तो पश्चिम बंगाल क्यों नहीं? यह कोलकाता हाईकोर्ट की एक टिप्पणी है. पश्चिम बंगाल में निजी स्कूलों की फीस संबंधी नीति को लेकर एक न्यायाधीश महोदय द्वारा की गई टिप्पणी है, जिस पर पश्चिम बंगाल सरकार को जरूर विचार करना चाहिए.
पश्चिम बंगाल एक ऐसा प्रदेश है जहां के निजी स्कूल फीस बढ़ोतरी के मामले में स्वतंत्र होते हैं. उन्हें किसी तरह की कोई गाइडलाइंस का पालन नहीं करना होता है. ना तो सरकार अपनी तरफ से कोई गाइडलाइंस रखती है और ना ही उन्हें किसी तरह के दबाव में काम करना होता है. हर साल स्कूलों में फीस बढ जाती है. इसके अलावा बुक्स, एडमिशन, ड्रेस, ट्यूशन फीस वगैरह के नाम पर अभिभावकों से मोटी धनराशि वसूल की जाती है.
निजी स्कूलों में शिक्षा इतनी महंगी हो गई है कि कमजोर अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने में असमर्थ रहते हैं. उन्हें अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में ही भेजने के लिए मजबूर होना पड़ता है. देखा जाए तो देश के कुछ प्रदेशों की तुलना में पश्चिम बंगाल में निजी स्कूलों की शिक्षा काफी महंगी है. अब तो कोलकाता हाई कोर्ट के न्यायाधीश विश्वजीत बोस ने भी इस पर टिप्पणी कर दी है.उन्होंने निजी स्कूलों में फीस संबंधी मामले की सुनवाई के दौरान यह कमेंट किया था कि शिक्षा कभी भी बिक्री योग्य वस्तु नहीं बननी चाहिए.
वास्तव में पश्चिम बंगाल के निजी स्कूलों में शिक्षा महंगी होने का कारण यहां सरकार का निजी स्कूलों पर फीस बढ़ोतरी संबंधी मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं है. पश्चिम बंगाल सरकार ने निजी स्कूलों में इसको लेकर किसी तरह का गाइडलाइंस नहीं बनाया है. यही कारण है कि निजी स्कूल फीस बढ़ोतरी के मामले में स्वतंत्र होते हैं. अब कोलकाता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से निजी स्कूलों के लिए गाइडलाइंस बनाने की बात कही है.
प्रदेश में कोरोना काल से ही निजी स्कूलों की फीस बढ़ोतरी को लेकर सवाल उठाए जाते रहे हैं. हाल ही में अप्रैल मई महीने में सिलीगुड़ी में कुछ निजी स्कूलों के द्वारा विभिन्न मदों के जरिए अभिभावकों से मोटी धनराशि वसूले जाने को लेकर काफी हंगामा हुआ था. प्रशासन ने भी हाथ खड़े कर लिए थे. अभिभावक बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं. अच्छी शिक्षा केवल निजी स्कूलों में ही संभव है. क्योंकि पश्चिम बंगाल के सरकारी स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं है.
निजी स्कूल इसका भी फायदा उठाते हैं और अभिभावकों को किसी न किसी तरीके से परेशान करते हैं. दूसरी ओर कभी अभिभावकों की तरफ से तो, कभी किसी और संगठन के माध्यम से निजी स्कूलों पर हमले किए जाते रहे हैं और सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की जाती है. परंतु सरकार इस दिशा में कोई भी निर्णय नहीं ले पाती है. इसका लाभ निजी स्कूल उठाते रहे हैं. जबकि देश के दूसरे प्रदेशों में फीस नीति को लेकर राज्य का अपना कानून है. जैसे फीस का ढांचा क्या होगा, लेकिन बंगाल में इस पर कोई दिशा-निर्देश नहीं है.
अब हाईकोर्ट के दखल के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि राज्य सरकार निजी स्कूलों की फीस बढ़ोतरी को लेकर कोई गाइडलाइन बनाएगी. भले ही वह निजी स्कूल प्रबंधन को पसंद हो या ना हो. लेकिन एक दिशा निर्देश होना जरूरी है. राजस्थान समेत कई ऐसे राज्य हैं जहां निजी स्कूलों को सरकार के गाइडलाइंस के अनुसार चलना पड़ता है. न्यायाधीश महोदय ने पूछा है कि अगर राजस्थान ऐसा कर सकता है तो पश्चिम बंगाल सरकार क्यों नहीं कर सकती है?