पश्चिम बंगाल में बोली जाने वाली अनेक भाषाओं में बांग्ला, राजवंशी, नेपाली, उर्दू और हिंदी भी शामिल है. बंगाल की प्रमुख और सबसे चर्चित भाषा बांग्ला है. उसके बाद हिंदी बोली जाती है. बाकी क्षेत्रीय भाषाएं हैं. जैसे पहाड़ में नेपाली भाषा, उत्तर बंगाल के कुछ क्षेत्रों में राजबंशी भाषा बोली जाती है. इसी तरह से कुछ क्षेत्रों में उर्दू भी बोली जाती है. जबकि हिंदी भाषा लगभग सभी जगह और खासकर शहरी क्षेत्र में बोली जाती है.
राज्य स्तर पर सरकार ने पहली भाषा के रूप में बांग्ला को अनिवार्य किया है. आज शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु ने कहा है कि राज्य सरकार छात्रों की पसंद में हस्तक्षेप नहीं करेगी. यानी छात्र चाहे तो पहली भाषा के रूप में कोई भी अपनी पसंदीदा भाषा चुन सकते हैं. परंतु पहली भाषा के रूप में बांग्ला, नेपाली, राजवंशी और उर्दू को ही विकल्प रखा गया है. जबकि पूरे प्रदेश में कम ज्यादा बोली जाने वाली हिंदी का स्थान ही नहीं है.
यहां हिंदी कॉलेज हैं, हिंदी स्कूल हैं, सरकार ने हिंदी भाषी छात्र छात्राओं के लिए हिंदी विश्वविद्यालय की भी घोषणा पूर्व में की थी. परंतु जब पहली भाषा चुनने की बात सामने आती है तो उसमें हिंदी का कोई स्थान ना होना क्या दर्शाता है? क्या हिंदी राजवंशी, उर्दू तथा दूसरी भाषाओं से भी कम बोली जाती है? क्या सरकार हिंदी की उपेक्षा नहीं कर रही है? क्या सरकार की नजर में हिंदी छात्र-छात्राओं का कोई स्थान नहीं है?
अगर ऐसा ही था तो हिंदी कॉलेज, स्कूल, यूनिवर्सिटी की क्या आवश्यकता थी? अगर पहली भाषा के रूप में सिर्फ बांग्ला तक बात रहती तब तो ठीक था. परंतु अन्य क्षेत्रीय भाषाएं जैसे राजवंशी, नेपाली, उर्दू को पहली भाषा का स्थान देकर और हिंदी को हाशिए पर रखकर सरकार क्या साबित करना चाहती है? क्या हिंदी इन सभी भाषाओं से भी गई गुजरी है? वर्तमान समय में हिंदी भाषियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. पूर्व में सरकार ने हिंदी भाषी छात्र छात्राओं के लिए कॉलेज, विद्यालय और यूनिवर्सिटी तक उपलब्ध कराए हैं तो क्या यह सब राजनीति का प्रतीक मात्र है? कम से कम मौजूदा बंगाल सरकार की शिक्षा नीति की सिफारिश को देखते हुए लगता तो ऐसा ही है.
राज्य के शिक्षा मंत्री ने यह ठीक कहा है कि बांग्ला को दूसरी भाषा के रूप में नहीं लागू किया जा सकता. इससे कम में लागू किया भी नहीं जाना चाहिए. जबकि दूसरी और तीसरी भाषा क्षेत्र विशेष में रहने वाले लोगों की जनसंख्या पैटर्न और जातीय प्रोफाइल पर निर्भर करेगी. क्या इस पैमाने की कसौटी में हिंदी भाषी छात्र छात्राएं नहीं आते हैं? आपको बताते चलें कि राज्य सरकार की नई शिक्षा नीति के अनुसार कक्षा 5 से लेकर आठवीं तक के निजी और सरकारी सभी स्कूलों के बच्चों को पहली भाषा के रूप में बांग्ला, उर्दू , राजवंशी और नेपाली सीखना अनिवार्य होगा. बांग्ला के अलावा अन्य भाषाएं क्षेत्रीय विशेष तौर पर लागू की जा सकती हैं.