पूरे बंगाल में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव हो रहे हैं. लेकिन पहाड़ में दो स्तरीय पंचायत चुनाव कराए जा रहे हैं. आखिर पहाड़ तो बंगाल का ही हिस्सा है फिर वहां त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव क्यों नहीं? क्या पहाड़ का संविधान अलग है?यह सवाल पहाड़ के कुछ बच्चों ने उठाए हैं.
दरअसल दार्जिलिंग में एक समय पर्वतीय परिषद हुआ करता था. सुभाष घीसिंग के जमाने में दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद की तूती बोलती थी. यह एक स्वायत्त संस्था थी, जो दार्जिलिंग कालिमपोंग और कर्सियांग को देखती थी. पहाड़ में विकास कार्यों के लिए पर्वतीय परिषद को सरकार फंड उपलब्ध कराती थी. 2011 में तृणमूल कांग्रेस सत्ता में आई तो दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद की जगह जीटीए अस्तित्व में आया. जिसे गोरखा हिल काउंसिल कहा जाता है.
जीटीए समझौते के समय पहाड़ में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली की शुरुआत करने की बात हुई थी. लेकिन इसके लिए जरूरी था कि जीटीए अधिनियम को एक संविधान के रूप में मान्यता दी जाती, जो आज तक नहीं हो सका है. जिसके कारण पहाड़ में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव लागू करना संभव नहीं हो सका है.
इस बीच दार्जिलिंग और पूरे बंगाल में पंचायत चुनाव को लेकर एक महत्वपूर्ण खबर निकल कर सामने आ रही है. संभव है कि कोलकाता हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद चुनाव आयोग पंचायत चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की समय अवधि बढ़ा सके.इसकी संभावना प्रबल हुई है. राज्य चुनाव आयुक्त ने इसके संकेत भी दे दिए हैं.
जहां तक पंचायत चुनाव में केंद्रीय बलों की उपस्थिति की भाजपा तथा कांग्रेस की मांग की बात है तो कोलकाता हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि यह सुनिश्चित करना राज्य का दायित्व है. यानी यह कहा जा सकता है कि राज्य में पंचायत चुनाव केंद्रीय बलों की उपस्थिति के बैगर संपन्न होंगे. हालांकि सोमवार को इस बारे में अदालत महत्वपूर्ण निर्णय ले सकती है.