आगामी 1 जुलाई से भारत में तीन नए आपराधिक कानून लागू हो रहे हैं. नए कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम हैं. यह सभी कानून क्रमशः औपनिवेशिक युग के भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने जा रहे हैं. कहा जा रहा है कि नए कानून देश के नागरिकों को तेज गति से न्याय प्रदान करने में सक्षम होंगे.
कानून कोई भी हो उसे लागू करने से पहले उसके विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करना जरूरी होता है. इसके लिए संसदीय समिति होती है. लोकसभा में और राज्यसभा में बहस होती है. इस पर चर्चा कराई जाती है. कानून की विशेषताओं और खामियों का पता लगाया जाता है. आवश्यक होने पर संशोधन प्रक्रिया भी अपनाई जाती है. इसके पश्चात ही कानून को लागू करना उचित रहता है.
विपक्ष पहले इन कानूनों की समीक्षा करना चाहता है. यह ठीक भी है कि कानून लागू करने से पूर्व समीक्षा होने से उसके गुण दोष के साथ ही कानून की सटीकता का भी पता चलेगा. क्योंकि कभी-कभी कानून पर समीक्षा या बैठक या बहस नहीं होने से कानून के कमजोर पहलुओं के बारे में पता नहीं चलता है. लेकिन समीक्षा होने से अथवा आलोचना होने से सभी तथ्य सामने आते हैं. आज मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी प्रधानमंत्री को इस संबंध में एक चिट्ठी लिखी है.
प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में मुख्यमंत्री ने कहा है कि फैसले को तब तक स्थगित रखा जाए, जब तक कि आपराधिक कानून की नए सिरे से संसदीय समीक्षा नहीं हो जाती है. न्यायालय में भारतीय दंड संहिता शब्द का अक्सर प्रयोग होता है. लेकिन नए कानून में इसके बदले भारतीय न्याय संहिता प्रयोग होगा. इसी तरह से दंड प्रक्रिया संहिता की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम होगा.
1860 में बनी इंडियन पेनल कोड में 511 धाराएं थी. जबकि भारतीय न्याय संहिता में 356 धाराएं होगी. कई सारी धाराओं को हटाया गया है. कईयों में बदलाव किया गया है और कई धाराएं नई जोड़ी गई है. भारतीय न्याय संहिता के लागू होने के बाद क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बड़ा बदलाव होगा. कुछ अपराध जोड़े गए हैं तो कुछ खत्म कर दिए गए हैं. उदाहरण के लिए पहली बार सजा के तौर पर कम्युनिटी सर्विस को जोड़ा गया है. वही नकली नोट रखना अपराध के दायरे से बाहर होगा.
आईपीसी की धारा 53 में पांच तरह की सजा बताई गई है. इनमें सजा या मौत, उम्र कैद, कठोर अथवा सामान्य कारावास, संपत्ति की जब्ती और जुर्माना शामिल है. भारतीय न्याय संहिता में एक नई सजा कम्युनिटी सर्विस भी जोड़ी गई है. इससे जेलों में कैदियों की संख्या में कमी आएगी. कम्युनिटी सर्विस छोटे-मोटे अपराधों में दोषी पाए जाने पर दी जाएगी. अदालत किसी दोषी को कम्युनिटी सर्विस की सजा भुगतने का आदेश दे सकती है जिससे लोगों को फायदा है
इस सजा में दोषी व्यक्ति को कोई पारिश्रमिक नहीं मिलेगा.कम्युनिटी सर्विस में किसी एनजीओ के लिए काम करना, किसी सामुदायिक संस्था के साथ काम करना, साफ सफाई करना, पब्लिक प्लेस से कचरा उठाने, यह सभी जनता की भलाई के लिए होंगे और इन्हें शामिल किया जाएगा. कम्युनिटी सर्विस में सजा दो महीने की हो सकती है. जुर्माने की रकम 5000 होने पर ऐसा संभव है. लेकिन अगर जुर्माना 10000 का लगता है तो 4 महीने कम्युनिटी सर्विस करनी होगी. कुछ मामलों में एक साल तक कम्युनिटी सर्विस की सजा हो सकती है.
आपको बताते चलें कि 2023 में इन कानूनों को अधिसूचित किया गया था. इन्हें 25 दिसंबर 2023 को अधिसूचित किया गया था. 1 जुलाई से इन आपराधिक कानून के लागू हो जाने से ब्रिटिश काल के आपराधिक कानून से छुटकारा मिल जाएगा. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने सभी केंद्रीय मंत्रालयों और विभागों को विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में नए आपराधिक कानून की विषय वस्तु को शामिल करने के लिए एक ज्ञापन जारी किया है.
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