अपने बयानों की वजह से हमेशा चर्चा में रहने वाले पश्चिम बंगाल भाजपा के कद्दावर नेता दिलीप घोष को भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया है.भाजपा ने अपने केंद्रीय पदाधिकारियों की जो सूची जारी की है, उसमें दिलीप घोष का नाम नहीं है. पश्चिम बंगाल से सिर्फ अनुपम हाजरा को स्थान मिला है. अनुपम हाजरा पहले की तरह ही पार्टी सचिव के रूप में काम करते रहेंगे.
हालांकि पार्टी की ओर से कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव को देखते हुए दिलीप घोष अपने संसदीय क्षेत्र पर विशेष ध्यान दे सकें इसके लिए उन्हें पद से मुक्त किया गया है. अब वह केवल सांसद हैं. ऐसे में दिलीप घोष अपने संसदीय क्षेत्र मेदनीपुर पर विशेष ध्यान दे सकेंगे. लेकिन भाजपा की यह सफाई गले नहीं उतरती. क्योंकि अनुपम हाजरा भी भाजपा सांसद हैं. परंतु उन्हें पहले की तरह ही जिम्मेदारी से मुक्त नहीं किया गया है.
इसके अलावा प्रदेश भाजपा नेताओं के संकेत से भी लग रहा है कि केंद्रीय नेतृत्व काफी समय से दिलीप घोष से खुश नहीं था. उन पर अपने काम और टिप्पणी की वजह से पार्टी की ओर से अनुशासन का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था. इसलिए यह एक दंडात्मक फैसला माना जा रहा है. दूसरी ओर दिलीप घोष का कहना है कि अभी तक उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है और ना ही कोई पत्र मिला है. उन्होंने कहा कि पार्टी ने सोच समझ कर ही फैसला किया होगा.
सर्वप्रथम दिलीप घोष के बारे में बता देना आवश्यक है. दिलीप घोष उस समय से भाजपा के साथ जुड़े हैं, जब पश्चिम बंगाल में भाजपा को कोई जानता तक नहीं था. दिलीप घोष दो दो बार बंगाल भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. कभी आरएसएस के प्रचारक रहे दिलीप घोष राजनीति में आने के कुछ ही दिनों बाद प्रदेश अध्यक्ष बन गए. दिलीप घोष का एक लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है.
दिलीप घोष ने विधानसभा का चुनाव लड़ा और वह विधायक बने. बाद में वह सांसद बने. 20 सितंबर 2021 को दिलीप घोष को अखिल भारतीय भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था. लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे उन पर पार्टी की जिम्मेदारियां कम की जाती रही. दिलीप घोष को देश के दूसरे प्रदेशों में भी चुनाव प्रचार अथवा अन्य कार्यों के लिए नहीं भेजा जाता था.
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केंद्र में अपने मंत्रिमंडल का विस्तार किया तो उस समय चर्चा थी कि दिलीप घोष को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाएगी. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. उस समय भी दिलीप घोष को काफी झटका लगा था. सिलीगुड़ी में मीडिया को संबोधित करते हुए उनका दर्द छलक पड़ा था.
पिछले कुछ समय से प्रदेश भाजपा में दिलीप घोष एक प्रतीक मात्र रह गए हैं. जिस तरह से केंद्रीय भाजपा में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी की जगह होती है, ठीक उसी तरह से बंगाल भाजपा में दिलीप घोष एक अभिभावक की तरह ही नजर आ रहे हैं. दिलीप घोष के समर्थक बताते हैं कि बंगाल विधानसभा चुनाव के समय दिलीप घोष ने पार्टी को जीत दिलाने के लिए रणनीति से लेकर वे सारे कार्य किए जिससे पहली बार भाजपा ने 3 से 77 का आंकड़ा पार किया.
एक बार फिर से यह चर्चा शुरू हो गई है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करेंगे तो दिलीप घोष को मंत्री बनाया जा सकता है.हालांकि यह एक कोरी कल्पना ही है. क्योंकि अगर दिलीप घोष को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जाती तो उन्हें जिम्मेदारी देने के बाद ही भाजपा के उपाध्यक्ष पद से हटाया जाता. पिछले कुछ समय से दिलीप घोष प्रदेश भाजपा में हाशिए पर चल रहे थे. अब जो हुआ, वह सभी पूर्व योजना का ही एक हिस्सा कहा जा सकता है.
हालांकि सिलीगुड़ी के भाजपा विधायक शंकर घोष ऐसा नहीं मानते. उनका कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व ने खूब सोच समझकर तालिका बनाई है. दिलीप घोष भाजपा के कद्दावर नेताओं में से एक है. उन्हें भविष्य में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जा सकती हैं. भले ही दिलीप घोष कोई बयान देने की स्थिति में ना हो, परंतु भीतर ही भीतर उनकी आत्मा जरूर कराह रही होगी- यह कैसा सिला दिया तूने मेरी वफा का…