आखिरकार केंद्र सरकार ने देशभर में CAA लागू कर दिया है. गृह मंत्रालय ने इस संदर्भ में विज्ञप्ति जारी कर दी है. केंद्र सरकार की इस घोषणा के बाद कम से कम पश्चिम बंगाल की राजनीति में भूचाल आने की संभावना विश्लेषक जता रहे हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जिस कानून को लेकर हमेशा विरोध करती रही है, उसी कानून को आज देश भर में लागू कर दिया गया है.
जाहिर है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसका तीव्र विरोध करेगी. मुख्यमंत्री ने पहले भी कहा है कि बंगाल में नागरिकता कानून को कभी नहीं लागू किया जाएगा. उन्होंने यहां तक कहा था कि इस कानून को लागू नहीं होने देने के लिए वह कुछ भी कर सकती हैं. आज एक बार फिर से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसका संकेत दे दिया. उन्होंने कहा है कि किसी भी कीमत पर बंगाल में इस कानून को लागू नहीं होने दिया जाएगा.
उन्होंने प्रदेश की जनता को भरोसा दिया है कि बंगाल में यह कानून कभी लागू नहीं होगा. इसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े, वह करेंगी. इसलिए लोगों को डरने की जरूरत नहीं है. अब सीएए लागू हो गया है. इसलिए देखना होगा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की ओर से पहली प्रतिक्रिया क्या होती है.
लोकसभा चुनाव की घोषणा के ठीक पहले भाजपा नागरिकता संशोधन कानून को देश भर में लागू करके इसका चुनाव में लाभ उठाने की तैयारी कर चुकी है. खासकर पश्चिम बंगाल में, जो बांग्लादेश से सटा हुआ है और यहां रोहिंग्या मुसलमानों की समस्या सर्वाधिक है, इसका लाभ उठाने की तैयारी कर रही है. कुछ दिनों पहले केंद्र में मंत्री रहे बंगाल के एक भाजपा सांसद ने नागरिकता संशोधन कानून लागू करने की बात कही भी थी.
कुछ ही देर पहले केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से इस कानून को लागू करने की विज्ञप्ति जारी की जा चुकी है. पश्चिम बंगाल में भाजपा को इसका भारी लाभ मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है. आपको बताते चलें कि नागरिकता संशोधन कानून यानी CAA संसद से पारित हुए लगभग 5 साल हो चुके हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह समेत भाजपा के बड़े-बड़े नेता पहले भी संकेत दे चुके है कि केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन कानून को देशभर में लागू करेगी. इस कानून के अंतर्गत मुस्लिम समुदाय को छोड़कर पड़ोसी मुल्कों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले विभिन्न धर्मो के लोगों को नागरिकता देने का प्रावधान है.
केंद्र सरकार ने इस कानून से संबंधित एक वेब पोर्टल भी तैयार किया है, जिसे नोटिफिकेशन के बाद लांच कर दिया जाएगा. जो लोग पड़ोसी मुल्कों से भारत आएंगे, उन्हें इस पोर्टल पर अपना रजिस्ट्रेशन करना होगा. इसके बाद सरकारी जांच पड़ताल होगी. उसके पश्चात उन्हें कानून के तहत नागरिकता प्रदान की जाएगी. बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से विस्थापित अल्पसंख्यकों को कोई दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी.
2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने नागरिकता कानून में संशोधन किया था. इसके अनुसार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 से पहले आने वाले हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पार्टी अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया था. इन नियमों के मुताबिक नागरिकता देने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के हाथों में होगा.
संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावली के मुताबिक किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की सहमति के 6 महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए. अगर ऐसा नहीं होता है तो लोकसभा और राज्यसभा में विधान समितियों से विस्तार की मांग की जाती है. इस कानून के मामले में 2020 से ही गृह मंत्रालय नियम बनाने के लिए संसदीय समितियों से नियमित अंतराल में एक्सटेंशन लेता रहा है.
आपको बताते चलें कि पिछले 2 सालों में नौ राज्यों के 30 से अधिक जिला मजिस्ट्रेटों और गृह सचिवों को नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्ध, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने की शक्तियां दी गई है. गृह मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2021-22 के मुताबिक 1 अप्रैल 2021 से 31 दिसंबर 2021 तक पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के कुल 1414 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई है.
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