मकर संक्रांति आ गई है. वर्तमान में यह सवाल जोर-जोर से उठाया जा रहा है कि गंगासागर बड़ा है या कुंभ? दोनों ही मेलों का आयोजन मकर संक्रांति और उसके बाद हो रहा रह है. गंगासागर के बारे में शास्त्रों में लिखा गया है कि सब तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार. ऐसी मान्यता है कि गंगा सागर स्नान से 100 अश्वमेध यज्ञ जैसा पुण्य फल मिलता है.
गंगासागर मेला बस शुरू होने ही वाला है. जबकि महाकुंभ की शुरुआत कुछ दिनों में हो रही है. कुंभ भारत का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन होता है. जो हर 12 साल में चार स्थान प्रयागराज, हरिद्वार ,उज्जैन और नासिक में आयोजित होता है. करोड़ों श्रद्धालु गंगा, जमुना, सरस्वती ,गोदावरी और शिप्रा नदियों के पवित्र जल में स्नान करके अपने पापों से मुक्ति पाने और मोक्ष प्राप्ति की कामना करते हैं.
हिंदू मान्यता के अनुसार देवताओं के 12 दिन मनुष्य के 12 साल के बराबर होते हैं. जबकि महाकुंभ 144 साल बाद लगता है. कूर्म पुराण के अनुसार अमृत पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच 12 दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ था. देवताओं के 12 दिन इंसानों के 12 सालों के बराबर होते हैं. इस युद्ध में देवताओं की विजय हुई थी. और अधर्म का नाश हुआ था. इसलिए देवताओं ने युद्ध के बाद देवलोक में ही स्नान किया था. इसलिए इस पौराणिक मान्यता के अनुसार कुंभ मेला हर 12 साल में लगता है.
गंगासागर को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि गंगा सागर स्नान कुंभ से भी बड़ा है. उनके इस दावे के बाद कई तरीके के अन्य दावे किए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री ने गंगासागर को राष्ट्रीय मेला घोषित करने की मांग केंद्र से की है .अब गंगासागर मेले के बारे में कुछ बात समझने की कोशिश करते हैं.
गंगासागर मेला हिंदू धर्म का दूसरा सबसे बड़ा मेला माना जाता है. प्रत्येक साल मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में यह मेला लगता है. सनातन धर्म में गंगासागर का आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व है. यह मेला सागर द्वीप में आयोजित किया जाता है. हालांकि मकर संक्रांति से कुछ दिन पहले ही मेले का आयोजन शुरू हो जाता है. परंतु स्नान का पुण्य फल मकर संक्रांति के दिन ही मिलता है. मकर संक्रांति के बाद गंगासागर मेले का समापन होने लगता है.
धार्मिक ग्रंथो के अनुसार एक बार राजा सागर विश्व विजय के लिए अश्वमेघ यज्ञ कर रहे थे. राजा इंद्र ने राजा सागर का यज्ञ का घोड़ा चुरा लिया. इसके बाद घोड़े को पाताल लोक में कपिल मुनि के आश्रम के पास बांध दिया. कहा जाता है कि जब राजा सागर के पुत्र घोड़े को ढूंढते हुए कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे तो उन्हें वहां घोड़ा बंधा हुआ मिल गया. उन्होंने कपिल मुनि के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया. उन्हें काफी अपमानित किया. इसके बाद कपिल मुनि आग बबूला हो गए.
उन्होंने राजा सागर के लड़कों को श्राप दिया. उनके सभी पुत्रों को जलाकर राख में भस्म कर दिया. इसके बाद राजा सागर के पोता भागीरथ ने वर्षों तक तपस्या की और पवित्र गंगा से अपने पूर्वजों की राख प्रवाहित करने का अनुरोध किया. गंगा ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और स्वर्ग से नीचे आकर राजा सागर के पुत्रों की राख को धो डाला. इससे उनके पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति मिल गई. यही कारण है कि मोक्ष पाने और पुराने पापों से मुक्ति पाने के लिए लाखों लोग गंगासागर पहुंचते हैं.
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