November 10, 2025
Sevoke Road, Siliguri
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सीमावर्ती इलाकों में SIR बना एक ‘संक्रामक रोग’! मां बेटी और एक बुजुर्ग की मौत!

चुनाव आयोग, सरकार और संगठनों की ओर से लगातार कहा जा रहा है कि SIR से किसी को डरने की जरूरत नहीं है. यह बहुत ही आसान प्रक्रिया है.इसमें किसी वैध व्यक्ति की नागरिकता नहीं जाएगी और ना ही किसी व्यक्ति का नाम मतदाता सूची से हटाया जाया जाएगा. लेकिन इसके बावजूद एस आई आर का असर पूरे प्रदेश में एक संक्रामक रोग की तरह ही हो रहा है और इससे घबराकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अनुसार 14 लोगों की अब तक मृत्यु हो चुकी है.

आज नदिया जिले में 70 साल के एक बुजुर्ग व्यक्ति की मौत हो गई. घर वालों के अनुसार वोटर लिस्ट से नाम हटने का उन्हें डर सता रहा था. मिल रही जानकारी के अनुसार बुजुर्ग व्यक्ति का नाम श्यामल कुमार साहा है. परिवार वालों का कहना है कि 2002 की सूची में उनका नाम नहीं था, जिस वजह से वह काफी परेशान थे. तृणमूल कांग्रेस ने इसके लिए भाजपा और निर्वाचन आयोग को जिम्मेवार ठहराया है, जबकि भाजपा ने इसे राजनीति से प्रेरित बताया है.

इसी तरह से हुगली जिले में 27 साल की एक महिला ने एस आई आर से संबंधित प्रपत्र नहीं मिलने के बाद अपनी नागरिकता खोने के भय से अपनी नाबालिग बेटी के साथ कथित तौर पर आत्महत्या का प्रयास किया है. यह घटना धनिया खाली की है. दोनों मां बेटी को SSKM अस्पताल में भर्ती कराया गया है. पुलिस पूरे मामले की सत्यता की जांच कर रही है.

घर वालों के अनुसार महिला काफी परेशान थी. क्योंकि उसे एस आई आर प्रपत्र नहीं मिला था. जबकि परिवार के अन्य सदस्यों को प्रपत्र मिल गया था. महिला कोलकाता में रहने वाली अपनी बेटी के पास चली गई और उसने अपना डर बताया. क्योंकि इस महिला के पास कोई अन्य दस्तावेज नहीं थे. इसलिए उसे डर सता रहा था कि दोनों मां बेटी को बांग्लादेश भेज दिया जाएगा.

इसी घबराहट में उसने अपनी बेटी के साथ जहर खा लिया. टीएमसी ने इसके लिए भाजपा पर हमला किया है और कहा है कि भाजपा ने राष्ट्रीय नागरिक पंजी एनआरसी और डिटेंशन कैंप के बारे में भ्रामक बयान देकर लोगों में भय उत्पन्न करने का काम किया है. देखा जाए तो बंगाल में एस आई आर शुरू होने के साथ ही इस तरह की खबरें आने लगी हैं. कुछ दिन पहले कूचबिहार में भी एक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली थी. लेकिन अगर इन सभी घटनाओं का बारीकी से अध्ययन करें तो पता चलता है कि ये घटनाएं उन इलाकों में ज्यादातर हो रही है जो बांग्लादेश से सटे इलाके हैं.

एस आई आर शुरू करने के पीछे भी भारत सरकार और चुनाव आयोग की मंशा भी यही है कि भारत के लोग ही भारत में रहे और घुसपैठियों को भारत से बाहर का रास्ता दिखाया जाए. कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर एक वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें भारत बांग्लादेश बॉर्डर इलाके में घुसपैठियों द्वारा बंगाल छोड़ने की हड़बड़ाहट और बेचैनी देखी जा रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह बार-बार कह रहे हैं कि भारत से एक-एक घुसपैठिये को भगाया जाएगा. ऐसा लगता है कि SIR नामक अस्त्र उसी दिशा में काम कर रहा है.

आने वाले समय में यह स्थिति और ज्यादा गंभीर होने वाली है. सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले ऐसे लोग, जिनके पास वोटर कार्ड, आधार कार्ड, सब कुछ है. लेकिन 2002 की मतदाता सूची में उनका नाम शामिल नहीं है. उनके पास अन्य 11 का मान्य दस्तावेज भी नहीं है तो उनका नाम तो कटेगा ही. इससे यह भी पता चलता है कि पिछले एक दशक में बांग्लादेश से बंगाल में आकर बसे घुसपैठियों की तादाद बढी है. भारतीय चुनाव आयोग की रिपोर्ट से भी यह पता चलता है. अगर इन इलाकों में SIR एक संक्रामक रोग की तरह असर दिखाता है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होनी चाहिए.

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