पैरासिटामोल आमतौर पर बुखार और बदन दर्द की दवा होती है. बुखार होने पर पैरासिटामोल की एक गोली लेने से बुखार उतर जाता है या कम हो जाता है. लेकिन सिलीगुड़ी के प्रवीण ने बताया कि पेरासिटामोल लेने से भी उसका बुखार नहीं उतरा. तब उसने डॉक्टर को दिखाया. इसी तरह से सिलीगुड़ी के ही एक अन्य व्यक्ति ज्वाला ने बताया कि उसके घर में मां बीमार रहती है. उनके बदन में हमेशा दर्द रहता है. इसलिए वह अपने घर के एड बॉक्स में डाइक्लोफिनेक रखता है. यह एक दर्द निवारक दवा है. ज्वाला के अनुसार मां के बदन में दर्द होने पर उसने यह दवा दी. लेकिन इससे उनके बदन का दर्द कम नहीं हो सका.
पिछले कुछ समय से अनेक रोगियों के द्वारा यह शिकायत की गई है कि दवा का उन पर कोई असर नहीं होता. पहले ऐसा नहीं था. आखिर रोगियों पर इन दवाओं का असर क्यों नहीं हो रहा है? कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. क्या बाजार में नकली दवाएं बिक रही हैं या फिर दवाओं का असर और कम होता जा रहा है. क्या पैरासिटामोल के नाम से डमी दवाएं बनाई जा रही है? आखिर रोगियों पर इन दवाओं का असर क्यों नहीं होता? क्या है सच? केवल सिलीगुड़ी में ही नहीं बल्कि देशभर में रोगियों से मिल रही शिकायत के बाद सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल आर्गेनाइजेशन ने एक बड़ा कदम उठाया है.
विभिन्न तरह की आशंकाओं और शिकायतों के बाद सीडीएससीओ ने पैरासिटामोल समेत 53 महत्वपूर्ण दवाओं की क्वालिटी का टेस्ट किया तो यह सभी दवाएं क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गई हैं. जो दवाएं फेल हुई हैं, उनमें पैरासिटामोल के अलावा दर्द निवारक डाइक्लोफिनेक, एंटी फंगल मेडिसिन फ्लूकोनाजोल, सन फार्मा की पेंटोसिड टैबलेट भी शामिल है. इसके अलावा कैल्शियम, विटामिन डी की टेबलेट शेलकल और पलमोसिल इंजेक्शन, एलकेम हेल्थ साइंस की एंटीबायोटिक्स क्लैवेम 625 भी शामिल हैं. यह सभी महत्वपूर्ण दवाएं हैं और इनमें से अधिकतर दवाएं लोग अपने घरों में इमरजेंसी इलाज के लिए रखते हैं.
लेकिन जब इन दवाओं का गुणवत्ता परीक्षण किया गया तो यह फेल हो गई. सीडीएससीओ ने मरीज और लोगों के हित में इन दवाओं की सूची जारी की है. इन दवाइयां में ब्लड प्रेशर की भी दवाइयां शामिल है जो घर-घर में पाई जाती है. अब जरा बताइए कि जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की गोलियां रेगुलर खानी पड़ती है, इन दवाइयों से उनका ब्लड प्रेशर कितना नियंत्रण में रहेगा. आपको बताते चलें कि सीडीएससीओ दवाओं की रेगुलेटरी बॉडी है. यह बाजार में बिकने वाली दवाओं की क्वालिटी टेस्ट करती है. दवाओं की गुणवत्ता की जांच कई चरणों में पूरी होती है.
दवाओं की क्वालिटी टेस्ट करने के लिए ड्रग्स अथॉरिटी होती है. यह दवाओं की सुरक्षा और उसके प्रभाव को समझती है. इसके लिए CDSCO के विशेषज्ञों की टीम बनाई जाती है, जो कई तरह की जांच करती है. जैसे विजुअल इंस्पेक्शन. इसके द्वारा दवाइयों से जुड़े दस्तावेज जैसे एक्सपायरी, लेवल आदि की जांच की जाती है. कंपनी के द्वारा अगर किसी तरह की झूठी जानकारी दी जाती है तो उसका क्रॉस चेक भी किया जाता है. अगर कंपनी ने किसी तरह की गलत जानकारी दी है तो जब तक दुरुस्त न हो जाए, दवाओं को बाजार में जारी होने से रोक दिया जाता है.
दवाओं की जांच सैंपलिंग एनालिसिस के जरिए होता है. CDSCO की भारत में कई शाखाएं हैं. सभी शाखाओं से दवाओं के सैंपल जांच के लिए लैब में भेजे जाते हैं. इन दवाइयों को कई मानकों पर परखा जाता है. लैब वैज्ञानिक का लक्ष्य होता है कि जो दवाइयां मार्केट में पहुंचाई जा रही है, वह रोगियों के लिए सुरक्षित है या नहीं. इसके साथ ही यह भी देखना और सुनिश्चित करना जरूरी होता है कि दवाइयां एफडीए और WHO के मानकों पर भी खरी उतरे.
दवाओं की क्वालिटी टेस्ट की प्रक्रिया काफी जटिल होती है. इसमें कई वैज्ञानिक काम करते हैं और प्रत्येक स्तर पर दवाओं की गुणवत्ता का परीक्षण किया जाता है. लंबे समय तक दवाओं का व्यक्ति पर क्या असर पड़ता है, वातावरण पर क्या असर पड़ता है, इसके अलावा स्टेबिलिटी का अध्ययन जरूरी होता है. सभी तरह के अध्ययन और निष्कर्ष के बाद गाइडलाइन जारी किया जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन और अमेरिकी ड्रग रेगुलेटर के अलग-अलग गाइडलाइंस होते हैं. एफडीए के गाइडलाइन को करंट गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रेक्टिस कहा जाता है. इसमें टेस्टिंग और दवा के प्रभाव की जांच की जाती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का पहला टेस्ट स्टेबिलिटी है. इसके अंतर्गत दवाओं की पैकिंग और स्टोरेज का ध्यान रखा जाता है. पैकिंग ऐसी होनी चाहिए जो दवा को प्रभावित होने से बचाए. दवा को कैसे स्टोर किया जाए कि उसका असर खत्म ना हो, कंपनी के लिए यह बताना भी जरूरी होता है. गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिस के अंतर्गत दवाओं का निर्माण होना चाहिए यानी डब्ल्यू एच ओ और FDA के गाइडलाइंस और टेस्ट प्रक्रिया लगभग समान ही होती है.
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