तीस्ता नदी अभिशाप नहीं है. यह तो जीवनदायनी नदी है. नदी का स्वरूप विकृत हो चुका है. लेकिन इस पर सिर्फ बैठक होती है. कार्य नहीं होता. यही कारण है कि जब जब यह नदी विकराल रूप धारण कर लेती है तो लोगों के मुंह से बरबस निकलता है कि नदी अभिशाप बन चुकी है.अगर तीस्ता नदी की मौजूदा समस्या का समाधान हो जाता है तो सिक्किम और उत्तर बंगाल के लिए यह नदी फिर से एक वरदान साबित होगी! ताजी अधिसूचना के बाद सिक्किम सरकार भी एक्शन मोड में आ चुकी है.
थोड़ी सी बरसात होते ही तीस्ता नदी उफनने लगती है. पिछले दिनों यह देखा भी गया था. जब पहाड़ में बारिश हुई थी, तो तीस्ता नदी का जल प्रवाह अत्यधिक बढ़ गया था. पहाड़ से निकलकर तीस्ता नदी समतल में जलपाईगुड़ी जिले के कई प्रखंडों और क्षेत्रों से गुजरती है और इन इलाकों में बरसात के दिनों मे सबसे ज्यादा कहर बरपाती है.
पिछले साल सिक्किम में तीस्ता नदी सिक्किम के लोगों के लिए एक मुसीबत बन गई थी. ऐसी मुसीबत कि सिक्किम का जन जीवन ठहर सा गया था. जान माल की भारी क्षति हुई थी. अनेक लोग तीस्ता नदी में बह गए थे. इसका असर उत्तर बंगाल और खासकर जलपाईगुड़ी जिले पर भी पड़ा था. जलपाईगुड़ी जिले में उदलाबाड़ी, क्रांति, माल, राजगंज, मयनागुरी, जलपाईगुड़ी सदर इत्यादि क्षेत्रों में तीस्ता नदी के विकराल होने का सबसे ज्यादा खतरा रहता है. यहां हर साल बाढ़ आती है. जान माल और कृषि को व्यापक नुकसान पहुंचता है.
पिछली सिक्किम त्रासदी के बाद तीस्ता नदी का स्वरूप बिगड़ गया है. तीस्ता नदी में रेत की एक मोटी परत जमा हो गई है. सेवक के नजदीक इलाकों समेत विभिन्न क्षेत्रों से गुजरने वाली तीस्ता नदी के तल में रेत की मोटी परत जमा हो चुकी है. इससे थोड़ी सी बरसात होने पर ही नदी का तल डेढ से 2 मीटर तक ऊपर उठ जाता है. नदी के किनारे अनेक बस्ती बस गई है. वहां के लोगों को बाढ़ का सामना करना पड़ता है. सिंचाई विभाग के चार जिलों के अधिकारियों के द्वारा मानसून में ऐसी स्थिति उत्पन्न ना हो, यह बचाने का प्रयास तेज कर दिया गया है.
मौजूदा संकट का समाधान दो तरीके से ही हो सकता है. या तो तीस्ता नदी की गाद को साफ किया जाए या फिर नदी तटबंध की मरम्मति कराई जाए या उसकी ऊंचाई बढ़ाई जाए. तभी यहां के लोगों को मानसून में बाढ़ से बचाया जा सकता है. इस पर सिंचाई विभाग ने व्यवस्था तेज कर दी है. जून महीने में मानसून सक्रिय होगा. तब तक यह व्यवस्था पूरी कर ली जाती है तो तीस्ता नदी अभिशाप नहीं बनेगी. सिंचाई विभाग के रेस कोर्स पाडा स्थित कार्यालय में उत्तर बंगाल के चार जिलों के सिंचाई अधिकारियों, मौसम विभाग और केंद्रीय जल आयोग के प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की गई थी. इस बैठक में सिंचाई विभाग के पूर्वोत्तर डिवीजन के मुख्य अभियंता कृष्णनेंदु भौमिक, उत्तर बंगाल मौसम विभाग के प्रवक्ता गोपीनाथ राहा,सिलीगुड़ी महकमा, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार और कूचबिहार जिलों के सिंचाई विभाग के कार्यकारी अभियंता और महकमा इंजीनियर उपस्थित थे.
इस बैठक में तीस्ता नदी की मौजूदा स्थिति पर विचार किया गया. यह मान लिया गया कि अगर पहाड़ों के साथ मैदानी इलाकों में भी बारिश होती है तो तीस्ता नदी की मौजूदा स्थिति काफी खतरनाक हो सकती है. इन सभी संभावित स्थितियों पर विचार करते हुए बाढ पूर्व नियंत्रण कार्य को लेकर भी कुछ फैसले किए गए हैं. इन फैसलों में सिक्किम से लेकर दार्जिलिंग, कालिमपोंग और तराई के पहाड़ी इलाकों में आने वाले मानसून के सही समय की जानकारी देना, मैदानी इलाकों में नदी तटबंध की ऊंचाई बढ़ाना आदि पर विचार किया गया.
बारिश से पहले उत्तर बंगाल के विभिन्न जिलों में बाढ़ नियंत्रण कार्यों को पूरा करने का फैसला लिया गया है. इसके लिए प्रयास भी शुरू हो चुके हैं. हालांकि वर्तमान में चुनाव आचार संहिता लागू होने के चलते कार्य बंद है, पर इसके शीघ्र ही चालू होने के आसार हैं. 100 करोड रुपए बजट का लक्ष्य भी रखा गया है. सिक्किम के लोगों को तीस्ता त्रासदी से बचाने के लिए अधिक से अधिक वर्षा मापी स्टेशनों की स्थापना पर जोर दिया जा रहा है. इसके अलावा उत्तर बंगाल में आठ नदियों पर भी 25 वर्षा गेज स्टेशनों का निर्माण किया जाएगा. इससे बारिश का पूर्वानुमान होगा और लोग सतर्क होंगे.
इस बीच सिक्किम सरकार ने मानसून से पहले सिक्किम को तीस्ता त्रासदी से बचाने के लिए एक अधिसूचना जारी कर 1 जून से लेकर 30 सितंबर तक किसी भी तरह के निर्माण, खुदाई , पहाड़ों में तोड़फोड़, कटाई आदि पर प्रतिबंध लगा दिया है. गंगटोक के जिला अधिकारी ने डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के अंतर्गत यह आदेश जारी किया है. मानसून के दौरान जमीन दलदली हो जाती है. भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है. इस स्थिति में किसी तरह के निर्माण या पहाड़ की कटाई करने पर विपरीत परिणाम का सामना करना पड़ सकता है.इसे ध्यान में रखकर ही यह अधिसूचना जारी की गई है.
सिक्किम से कालीझोरा तथा गाजलडोबा होते हुए तीस्ता नदी तक पानी पहुंचने में लगभग 8 से 12 घंटे का समय लगता है. इस अवधि में नदी किनारे के लोगों को सतर्क किया जा सकता है. साथ ही उन्हें सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा सकता है. सिक्किम मौसम विभाग के निदेशक और उत्तर बंगाल मौसम विभाग के प्रवक्ता गोपीनाथ राहा का मानना है कि जितने अधिक वर्षा मापी स्टेशन लगाए जाएंगे, उतनी ही अधिक लोगों को जानकारी होगी और उन्हें सतर्क होने का समय मिलेगा. वर्तमान में सिक्किम में 70 वर्षा मापी स्टेशन है. हालांकि यह सभी अस्थाई विकल्प हैं. जब तक कि तीस्ता नदी में जमा हुई रेत और गाद को निकाला नहीं जाता है, तब तक इसका स्थाई समाधान नहीं हो सकता है.
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