May 3, 2024
Sevoke Road, Siliguri
उत्तर बंगाल राजनीति सिलीगुड़ी

चुनाव में दौलत कमाने का शॉर्टकट तरीका!

चुनाव के इस मौसम में दार्जिलिंग के विक्रम राय (कल्पित नाम) ने दौलत कमाने का एक तरीका ढूंढा. विक्रम राय के परिवार में उनकी पत्नी, एक बेटा और एक बेटी तथा वह स्वयं थे. विक्रम राय पहले एक ठेकेदार थे. लेकिन बाद में उन पर घोटाले का आरोप लगाकर उन्हें ठेके सिस्टम से अलग कर दिया गया. तब से वह बेरोजगार चल रहे थे.

विक्रम राय के बड़े-बड़े सपने थे. वह बड़े ही चतुर और अत्यंत महत्वाकांक्षी व्यक्ति थे. धन दौलत कमाने के लिए परिश्रम और लगन की जरूरत होती है. लेकिन विक्रम राय का ख्याल था कि मोटा धन हमेशा शॉर्टकट रास्ते आता है. अगर अमीर बनना है तो कुछ ऐसा उपाय करना होगा, जिससे कि एक बार में ही पूरे 5 साल की कमाई की जा सके.

विक्रम राय एक सामाजिक व्यक्ति थे. पहाड़ में लोग उन्हें एक पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में जानते थे. हालांकि उन्होंने उक्त पार्टी को काफी पहले ही छोड़ दिया था. लेकिन इससे उनका समाज में एक अच्छा प्रभाव बन गया था. रात में विक्रम राय ने सपना देखा. सुबह उठे तो पत्नी को बताया कि वह निर्दलीय चुनाव लड़ने जा रहे हैं. इस पर पत्नी नाराज हुई. बोली, चुनाव लड़ने जा रहे हो… पैसे बर्बाद होंगे और वोट भी नहीं मिलेगा. वैसे भी घर में फाकेकशी चल रही है… विक्रम राय ने जवाब दिया, घबराती क्यों हो भाग्यवान! मैं चुनाव जीतने के लिए नामांकन दाखिल करने नहीं जा रहा हूं. इसके बाद विक्रम राय ने फुसफुसाकर पत्नी को बताया कि उनका मुख्य मकसद क्या था.

इस तरह की घटनाएं चुनाव के समय काफी देखी जाती है. राजनीतिक दल के उम्मीदवार तो दो-तीन ही होते हैं, लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार दर्जनों होते हैं. कुछ निर्दलीय उम्मीदवारों का शौक चुनाव लड़ना होता है तो कई ऐसे हैवीवेट निर्दलीय उम्मीदवार होते हैं, जो पार्टी से टिकट नहीं मिलने पर स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ते हैं. परंतु कभी-कभार यह भी देखा जाता है कि कुछ निर्दलीय उम्मीदवार अपना उल्लू सीधा करने के लिए चुनाव में खड़े हो जाते हैं.. कुछ निर्दलीय उम्मीदवार किसी राजनीतिक दल का वोट काटने के लिए नामांकन दाखिल करते हैं. जबकि कभी-कभी ऐसा भी देखा गया है कि कुछ निर्दलीय उम्मीदवार ऐसे भी होते हैं जो ऐसे उम्मीदवारों अथवा राजनीतिक दल से सौदेबाजी करते हैं, जिन्हें लगता है कि उसके द्वारा नाम वापस लेने से उनकी पार्टी को अथवा प्रमुख राजनीतिक दल के उम्मीदवार को फायदा हो सकता है.

चुनाव में उम्मीदवार अथवा उनकी पार्टी के द्वारा काफी पैसा खर्च किया जाता है. प्रमुख दलों के उम्मीदवारों को अपना वोट बढ़ाने के लिए सबसे पहले निर्दलीय उम्मीदवारों से ही लड़ना होता है. अपना उल्लू सीधा करने की गरज से चुनाव में खड़े निर्दलीय उम्मीदवार हैवीवेट उम्मीदवारों से मोलतोल करते हैं. सौदा फाइनल होता है.उसके बाद वह अपना नाम वापस ले लेते हैं.हालांकि हैवीवेट उम्मीदवार अथवा प्रमुख राजनीतिक दलों के उम्मीदवार केवल उन्हीं निर्दलीय उम्मीदवारों को पैसे देकर बैठा देते हैं जिनसे उन्हें सहयोग अथवा वोट मिलने की उम्मीद रहती है. क्योंकि राजनीति में बिना फायदे के कोई किसी का इस्तेमाल नहीं करता.

पहले चरण में तीन सीटों के लिए अनेक निर्दलीयों ने नामांकन दाखिल किया है. दूसरे चरण के नामांकन का सिलसिला शुरू हो गया है. इसके साथ ही निर्दलीय भी तेजी से नामांकन दाखिल कर रहे हैं.असली खेल अपना उल्लू सीधा करने की गरज से खड़े स्वतंत्र उम्मीदवारों द्वारा नाम वापस लेने के साथ ही शुरू होगा.

उस दिन विक्रम राय पत्नी को बता रहे थे, सौदा फाइनल हो चुका है… भाग्यवान अब 2 साल तक हमारे घर में बरकत रहेगी! पत्नी ने उत्तर दिया- चलो, कुछ ना कुछ तो आ ही रहा है… समथिंग इज ग्रेटर दैन नथिंग… ईश्वर करे, हर साल चुनाव हो! आपको बता दूं कि यह पूरी तरह एक व्यंग्यात्मक कहानी है और इसका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है…

( चुनावी CHAKLAS : इस स्तंभ में दिए गए घटनाक्रमों का किसी वास्तविक व्यक्ति या स्थान से कोई संबंध नहीं है | समानता संयोवश हो सकती है | इसके लिए खबर समय किसी तरह जिम्मेदार नहीं है – संपादक)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

DMCA.com Protection Status