सावन का महीना शुरू हो गया है. और इसी के साथ सिलीगुड़ी के शिवभक्त कांवड़ियों में भी उत्साह दिखने लगा है. सिलीगुड़ी से कांवरिए बाबा धाम प्रस्थान करने की तैयारी में जुट गए हैं. पिछले 48 सालों से नियमित रूप से प्रेस बम पार्टी बाबा धाम के लिए जाती है.आज सिलीगुड़ी से प्रेस बम पार्टी रवाना हो गई.
इस साल कांवरियों के लिए लगभग 2 महीने का समय मिला है. इस साल मलमास के कारण श्रावणी मेला और कांवड़ यात्रा दो चरणों में आयोजित की जा रही है. पहला चरण 4 जुलाई से 17 जुलाई तक आयोजित किया जाएगा. मलमास 18 जुलाई को शुरू होगा तथा 16 अगस्त को समाप्त होगा. इसके बाद श्रावणी मेले का दूसरा चरण 17 अगस्त से 31 अगस्त तक होगा.
सिलीगुड़ी के बाजारों व कपड़े की दुकानों में कांवरियों के लिए लाल और केसरिया रंग सजने लगा है. दर्जी की दुकानों पर भी भीड़ बढ़ने लगी है. घर में 1 साल पहले रखे कांवर को भी निकाल कर साफ किया जाने लगा है. महावीर स्थान तथा सिलीगुड़ी के दूसरे बाजारों में कांवर तथा रंग-बिरंगे कपड़ों को देख कर ऐसा लगता है कि सिलीगुड़ी इसके लिए पूरी तरह तैयार है. सिलीगुड़ी से अधिकांश शिवभक्त जल चढ़ाने के लिए बाबा धाम जाते हैं. बिहार के सुल्तानगंज में गंगा धाम में उत्तरवाहिनी गंगा से गंगा जल भर कर पैदल अपनी कावड़ यात्रा शुरू करते हैं और झारखंड के देवघर में बाबा बैजनाथ धाम में यात्रा संपूर्ण करते हैं.
इस बार देवघर प्रशासन ने कांवरियों के लिए 3 तरह से व्यवस्था की है.पहली व्यवस्था के अंतर्गत सामान्य कतार होगी. इसके लिए मंदिर से लेकर रूट लाइन में लगने की व्यवस्था की गई है.सामान्य कतार के माध्यम से पूजा करने वाले कांवड़ियों को जल का संकल्प कराने के बाद मानसरोवर की ओर से जलसा चिल्ड्रन पार्क होते हुए कतार के अंतिम छोर तक जाना होगा. दूसरी व्यवस्था शीघ्र दर्शन की है.इसमें प्रति व्यक्ति ₹500 देना होगा. इस कूपन को लेने वाले भक्तों को प्रशासनिक भवन के रास्ते से 20 से 30 मिनट में जल अर्पण की व्यवस्था की गई है. जबकि तीसरी व्यवस्था वाह्य अरघा से जल अर्पण की है. यह मंदिर परिसर स्थित निकास द्वार से सटा हुआ है.इसमें पाइपलाइन को बाबा की शिवलिंग तक जोड़ा गया है. यहां पर जल अर्पण करने के बाद कांवरियों का जल सीधे बाबा पर अर्पित होगा. जिसे बाबा के मंदिर के ठीक ऊपर लगे बड़े स्क्रीन में भक्त देख सकते हैं.
कहा जाता है कि यहां त्रेतायुग में कांवर ले जाने की परंपरा शुरू हुई थी.भगवान राम इस यात्रा को शुरू करने वाले पहले भक्त थे. उन्होंने सुल्तानगंज से कांवड़ में पवित्र गंगाजल लाया था और बाबा धाम में भगवान शिव को जलाभिषेक किया था. यह उल्लेख आनंद रामायण में भी मिलता है. कुछ लोगों के मन में यह जिज्ञासा हो रही होगी कि आखिर सावन के महीने में ही कावड़ यात्रा क्यों होती है. इसलिए यह जानना जरूरी है.
हमारे धर्म शास्त्रों और खासकर पुराणों में इस बात का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के दौरान हलाहल विष सहित कई अमृत भी उत्पन्न हुए थे. भगवान शिव ने विष का सेवन किया था. इससे उनका गला नीला हो गया. इसलिए उनका नाम नीलकंठ पड़ा. इसी विष के प्रभाव को कम करने के लिए भगवान शिव को जल चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई. यही कारण है कि जल चढ़ाने के लिए सभी ठंडी चीजों जैसे अर्धचंद्र, गंगा और लिंग पर लगातार टपकता जल के साथ उनका जुड़ाव हो गया. ऐसा कहा जाता है कि समुद्र मंथन सावन के महीने में ही हुआ था. इसलिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की प्रथा सावन में ही शुरू हुई थी.