अगर आपसे पूछा जाए कि आवारा कुत्ते और पशु सबसे ज्यादा किस जगह दिखते हैं, तो जवाब अक्सर होता है: अस्पताल, स्कूल, स्टेशन, बस स्टैंड, बाजार और सड़कें। सिलीगुड़ी में आवारा कुत्तों की संख्या हाल के वर्षों में बढ़ी है, और इससे मानव सुरक्षा के साथ-साथ इन बेजुबान पशुओं की सुरक्षा का सवाल भी सामने आता है। कई बार अस्पतालों में इलाज कराने की घटनाएं भी सामने आई हैं।
बहुत पहले सिलीगुड़ी नगर निगम के मेयर गौतम देव ने कहा था कि कुत्तों की नसबंदी की जाए और उन्हें एक सुरक्षित बाड़े में रखा जाए, ताकि उनका भी संरक्षण हो और शहर में संतुलन बना रहे। यह कदम कुत्तों के हित में भी है, क्योंकि असुरक्षित और भीड़भाड़ वाले इलाकों में वे खुद दुर्घटनाओं का शिकार बनते हैं।
इसी तरह खुले में छोड़े गए मवेशी भी कभी-कभी ट्रैफिक और दुर्घटनाओं का कारण बनते हैं। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि सड़कों पर घूमते ये जानवर कई बार भूख, चोट और जोखिम से भरी जिंदगी जीते हैं। इसलिए इनके लिए सुरक्षित स्थानों की व्यवस्था होना जरूरी है, ताकि इन्हें खतरे से दूर रखा जा सके।
इसी संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का हालिया निर्णय आया है। कोर्ट ने स्कूल, अस्पताल, बस स्टैंड, खेल परिसर, रेलवे स्टेशन, बाजार आदि से कुत्तों और पशुओं को हटाने का आदेश दिया है, लेकिन साथ ही यह भी साफ कहा है कि उन्हें सुरक्षित स्थानों, शेल्टर या गौशाला में सम्मानजनक ढंग से रखा जाए। अदालत का उद्देश्य कुत्तों को नुकसान पहुंचाना नहीं, बल्कि उन्हें ऐसी जगह ले जाना है जहां वे चोट, भूख या सड़क दुर्घटनाओं से बचे रहें।
कोर्ट ने कहा है कि स्कूलों और अस्पतालों में चारदिवारी और गेट जैसी व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वहां पशु गलती से घुस न सकें और बच्चों, मरीजों और खुद जानवरों की सुरक्षा बनी रहे। साथ ही राजमार्ग और एक्सप्रेसवे पर उनकी जान पर भी बड़ा खतरा रहता है, इसलिए वहां से भी उन्हें सुरक्षित स्थानों पर ले जाना जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, जिन कुत्तों और पशुओं को हटाया जाए, उन्हें वापस उन्हीं खतरनाक स्थानों पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। उन्हें भोजन, देखभाल और चिकित्सा सुविधा के साथ संरक्षित स्थानों पर रखा जाए। यह आदेश पूरे देश पर लागू है, जिसमें पश्चिम बंगाल भी शामिल है।
सिलीगुड़ी की बात करें तो नगर निगम पहले से ही इस दिशा में काम शुरू कर चुका है और कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने, नसबंदी कराने और उन्हें सुरक्षित रखने की दिशा में कदम उठा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस प्रक्रिया को और जिम्मेदारी से लागू करने की उम्मीद की जा रही है।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि सभी संस्थान एक नोडल अधिकारी नियुक्त करें, जो सुनिश्चित करे कि परिसर में कुत्ते या पशु अनजाने में प्रवेश न करें और जरूरत पड़ने पर नगर निगम को सूचना दें। स्थानीय निकायों को इन परिसरों का हर तीन महीने में निरीक्षण भी करना होगा।
अर्थात तस्वीर अब काफी स्पष्ट है: सुप्रीम कोर्ट मानव और पशु दोनों की सुरक्षा पर जोर दे रहा है। लक्ष्य यह नहीं कि इन बेजुबान प्राणियों को सताया जाए, बल्कि उन्हें खतरों से बचाकर ऐसे स्थानों पर रखा जाए जहां उनकी जिंदगी सुरक्षित और सम्मानजनक हो।
आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार और सिलीगुड़ी नगर निगम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को किस तरह लागू करते हैं, ताकि शहर भी सुरक्षित रहे और हमारे चार पैर वाले साथी भी।

