उत्तर बंगाल और सिक्किम की जीवन रेखा कही जाने वाली तीस्ता नदी में हर साल बाढ़ आती है और बाढ़ से एक तरफ प्रमुख सड़क NH-10 तबाह होता है तो दूसरी तरफ जान माल का भारी नुकसान भी होता है. अगर बरसात के दिनों मे NH-10 बार-बार बंद होता है तो इसका एक कारण तीस्ता नदी में आई बाढ़ भी है. जरा सी बरसात में ही तीस्ता नदी उधम मचाने लगती है और उसका पानी आसपास के क्षेत्रो में फैल जाता है. तीस्ता नदी के तट पर बसे कई इलाके जल में डूब जाते हैं.
तीस्ता नदी में आने वाली त्रासदी का संबंध तीस्ता नदी के पेट में भर गई रेत और कचरे से लगाया जाता है. नदी में रेत का स्तर लगातार बढ़ रहा है. इसके कारण नदी का पानी आसपास के क्षेत्र में फैल जाता है और बाढ़ आ जाती है. इसका अध्ययन करके और भविष्य में तीस्ता नदी को संभावित बाढ़ की स्थिति से बचाने के लिए तीस्ता नदी से बालू उत्खनन हेतु एक डीपीआर तैयार किया गया है. सिंचाई विभाग को भेजे गए डीपीआर में सेवक से लेकर तीस्ता तक कम से कम 20 स्थानों पर बालू पत्थर उत्खनन की बात कही गई है.
इन इलाकों में तीस्ता के तल में ढेर सारा बालू एकत्र हो गया है. एक अनुमान के अनुसार तीस्ता नदी बेसिन में लगभग 20 करोड़ 20 लाख क्यूबिक मीटर यानी 7 करोड़ 13 लाख 35 हजार टन रेत जमा है. इस रेत का उपयोग निर्माण उद्योग में किया जा सकता है. सिंचाई विभाग ने अपने परीक्षण में पाया है कि तीस्ता के तल में मध्यम रेत है, जिसका उपयोग निर्माण कार्यों में आसानी से किया जा सकता है. हालांकि अभी इसकी गुणवत्ता की जांच बाकी है.
राज्य सिंचाई विभाग के उत्तर पूर्व डिविजन के मुख्य अभियंता कृष्णेन्दु भौमिक का कहना है कि अक्टूबर 2023 में तीस्ता नदी में आई त्रासदी के बाद रिकॉर्ड मात्रा में रेत और पत्थर इसके तल में जमा हो गए हैं. जिसके कारण पानी ऊपर ऊपर बह रहा है. तल भर जाने के कारण पानी को तीस्ता नदी समेट नहीं पाती है. उन्होंने बताया कि उदलाबाड़ी, टोटो गांव, चांदमारी, लाल टांग बस्ती, मिलनपल्ली, वीरेन बस्ती, पहाड़पुर, बसुसुबा, दो मोहनी, प्रेमगंज, बाकली आदि स्थानों पर तीस्ता नदी की घाटी में अत्यधिक रेत जमा हो गई है. इन स्थानों पर आने वाली बाढ़ का मुख्य कारण रेत और पत्थर ही है, जहां से रेत और पत्थर निकाला जाना जरूरी है.
कृष्णेन्दु भौमिक का मानना है कि अगर इन इलाकों से रेत और पत्थर निकालने का काम शुरू कर दिया जाए तो अगले साल इन इलाकों में बाढ़ आने की संभावना काफी कम हो जाएगी. लेकिन इसके साथ ही कुछ सवाल भी जुड़े हुए हैं. जिन इलाकों की बात कही गई है, उसके दायरे में वन क्षेत्र भी आते हैं. बस्ती, माइंस एंड मिनरल, पुलिस प्रशासन सभी युक्त हैं. अतः इन सभी की राय और विचार के साथ सहमति भी जरूरी है.
तीस्ता नदी से बालू उत्खनन कोई आसान काम नहीं है. जो योजना तैयार की गई है, उसके अनुसार 32 किलोमीटर लंबी तीस्ता नदी के क्षेत्र से बालू पत्थर उत्खनन में कम से कम 567 करोड रुपए का खर्च आएगा. यह रकम कहां से आएगी? इसके साथ ही समस्या यह भी होगी कि रेत और पत्थर को किन एजेंसियों को बेचा जाएगा? रेत और पत्थर का और कहां-कहां उपयोग हो सकता है और क्या व्यावसायिक एजेंसियां इनमें दिलचस्पी लेगी? इस तरह के कई सवाल हैं. बहरहाल यह देखना होगा कि डीपीआर राज्य सिंचाई विभाग तक पहुंचाने के बाद राज्य सरकार इस पर क्या फैसला लेती है?
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