कभी दोनों की अटूट दोस्ती थी.एक अर्जुन था तो दूसरा कृष्ण. लोकसभा चुनाव जीतने की रणनीति कृष्ण बनाते और अर्जुन उसके अनुसार ही रणनीति को अंजाम देते थे. तब अर्जुन को दार्जिलिंग लोक सभा संसदीय क्षेत्र के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. परंतु उनके चुनाव रूपी रथ के कृष्ण ने दार्जिलिंग लोकसभा संसदीय क्षेत्र के बारे में सब कुछ बताया. यहां तक कि अर्जुन को सफलता दिलाने के लिए कृष्ण ने मीडिया संबोधन से लेकर कब कहां क्या बोलना है, यह सब भी निर्धारित करते थे. यानी पूरी प्लानिंग के साथ लोकसभा चुनाव लड़ा गया था और इसमें अर्जुन की भारी विजय हुई थी.
इस समय पहाड़ में कुछ ऐसी ही आवाज आ रही है. विपक्षी पार्टियों को बैठे-बिठाए मौका मिल गया है. क्योंकि अब अर्जुन बागी हो गया है. बात हो रही है दार्जिलिंग लोकसभा के सांसद राजू बिष्ट और कर्सियांग के भाजपा विधायक बीपी बजगई की. पहाड़ के राजनीतिक गलियारे में राजू बिष्ट और बीपी बजगई की तकरार के बारे में चर्चा छिड़ गई है. बहरहाल यह सब 2019 के लोकसभा चुनाव की बात है, जब राजू बिष्ट ने भारी बहुमत से दार्जिलिंग लोकसभा चुनाव जीता था. इसका श्रेय बीपी बजगई को दिया जाता है. आज वही बीपी बजगई राजू बिष्ट के बागी हो गए हैं. कम से कम पहाड़ की राजनीति में लोग इसी बात की चर्चा कर रहे हैं.
बीपी बजगई पहाड़ में अपना राजनीतिक प्रभाव जमाने के लिए समाज सेवा का काम कर रहे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में 11 जाति गोष्ठी को जनजाति में शामिल करने का वादा किया था. यह अब तक पूरा नहीं हो सका है. विपक्षी पार्टियां हमलावर है. राजू बिष्ट चुप हैं. परंतु उनके सहयोगी बीपी बजगई अब उनसे दूरी बनाने लगे हैं. उन्होंने फेसबुक पर राजू बिष्ट का पुराना वीडियो अपलोड करते हुए उनके वादों को याद कराया है. यह वीडियो लगभग 1 साल पुराना है. इसमें राजू विष्ट कह रहे हैं कि वह गोरखा के लिए 11 जनजाति के मुद्दे का समाधान करेंगे…
राजू बिष्ट और बीपी बजगई के बीच की दूरियां पंचायत चुनाव के समय ही दिख गई थी. जिस सक्रियता के साथ राजू बिष्ट पार्टी के लिए काम कर रहे थे,बीपी बजगई उतनी ही उदासीनता के साथ पीछे छिप गए थे. सूत्रों ने बताया कि बीपी बजगई और राजू बिष्ट के बीच गोरखालैंड के मुद्दे पर तनातनी लगातार बढ़ रही है. सूत्र बता रहे हैं कि बीपी बजगई ने इसी मुद्दे पर राजू बिष्ट का साथ दिया था, जो अब पूरा होते नहीं देख कर उनसे किनारा करना शुरू कर दिया है. अगर अब भी भाजपा अपने पुराने घोषणा पत्र को लेकर गंभीर नहीं होती है तो एक-एक कर राजू बिष्ट के पुराने साथी उन्हें बाय-बाय कहते जाएंगे और इस तरह से राजू विष्ट अकेला पड़ जाएंगे. राजू बिष्ट के खेमे के एक व्यक्ति ने अपना नाम ना बताने की शर्त पर कहा.
वर्तमान में पहाड़ में राजू बिष्ट को मन घीसिंग व कुछ छोटे दलों का समर्थन इसलिए मिल रहा है कि वह भी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि भाजपा गोरखा मुद्दे को लेकर स्थाई राजनीतिक समाधान करेगी और 11 जाति गोष्ठी को जनजाति की मान्यता दिलाएगी. राजू बिष्ट को भी लगता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पूर्व भाजपा अपना वायदा पूरा करेगी. अगर ऐसा होता है तो राजू विष्ट का जनाधार फिर से मजबूत होगा और लोकसभा 2024 के चुनाव में फिर से राजू बिष्ट दार्जिलिंग लोकसभा के प्रतिनिधि के रूप में नजर आ सकते हैं. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है तो राजू बिष्ट के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव काफी महंगा साबित हो सकता है.
हालांकि बीपी बजगई ने राजू बिष्ट के साथ दुश्मनी या तनातनी विद्रोह इत्यादि शब्दों से परहेज रखते हुए सिर्फ इतना कहा है कि राजू बिष्ट के साथ उनका संबंध गोरखा मुद्दे पर है. लेकिन जब यह मुद्दा ही पूरा नहीं होगा तो किस बात की दोस्ती. फिलहाल वह इंतजार करेंगे. देखते हैं कि भाजपा अगला कदम क्या उठाती है. उनके बगावती तेवर के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि सच बोलना अगर बगावत है तो वह बागी हैं. पहाड़ के जानकार मौजूदा स्थिति को लेकर भाजपा के लिए यह शुभ संकेत नहीं बता रहे हैं. वीडियो वायरल करने की घटना ने पहाड़ में राजनीतिक उबाल लाना शुरू कर दिया है. विपक्षी पार्टियां इसी मौके की ताक में थी. अब उन्हें एक बड़ा मुद्दा और हथियार मिल गया. अब देखना है कि राजू विष्ट वर्तमान संकट से किस तरह से निजात पाते हैं.