उत्तर बंगाल के चाय बागान में काम करने वाले श्रमिकों के शोषण और उत्पीड़न की कहानियां कोई नई बात नहीं है.बागान प्रबंधन कम मजदूरी में श्रमिकों से पुरजोर काम लेते हैं और समय पर वेतन भुगतान भी नहीं करते.यही कारण है कि उत्तर बंगाल में चाय बागान में काम करने वाले श्रमिक असंतोष और आंदोलन की कहानियां हर दूसरे तीसरे दिन सुनाई देती है.
अलीपुरद्वार जिले के कालचीनी प्रखंड के अंतर्गत निमति झोड़ा चाय बागान इन दिनों श्रमिकों के आंदोलन का गवाह बना हुआ है. बागान के श्रमिक अपनी मांगों को लेकर गेट मीटिंग के साथ विभिन्न तरीके से धरना प्रदर्शन कर रहे हैं. सोमवार को उन्होंने घंटों बागान के गेट पर गेट मीटिंग कर धरना प्रदर्शन किया.
इन श्रमिकों की वही पुरानी मांगे हैं. समय पर वेतन का भुगतान ना होना, कम मजदूरी और अधिक काम, आवास की मरम्मति नहीं, पीएफ,ग्रेजुएटी नहीं… इत्यादि विभिन्न मांगे उनकी अन्य चाय बागान के श्रमिकों की तरह ही है. एक तो चाय बागान के श्रमिकों को बहुत कम पैसा मिलता है. ऊपर से समय पर भुगतान ना होने से उनकी पारिवारिक स्थिति और खराब हो जाती है.
पश्चिम बंगाल सरकार, चाय बागान श्रमिक संगठनों और प्रबंधन पक्ष के बीच कई बार वेतन बढ़ोतरी समेत विभिन्न मांगों पर चर्चा हो चुकी है. लेकिन मामूली वेतन वृद्धि के अलावा उनकी समस्याओं पर कभी विचार नहीं किया गया है. डुवार्स के अनेक चायबगान तो पहले ही बंद हो चुके हैं. जो गिने-चुने रह गए हैं, वह भी अनिश्चितता के शिकार हो चुके हैं.
चाय बागान प्रबंधन का रोना रहता है कि जब उन्हें कमाई नहीं होती तो बागान श्रमिकों को कहां से पूरा पैसा देंगे. पूर्व में यह बात सामने आ चुकी है कि अनेक बागान प्रबंधक श्रमिकों का वेतन,पीएफ आदि का पैसा भी डकार चुके हैं. बेहद अभाव और संकट में दिन गुजार रहे नीमति झोड़ा चाय बागान के श्रमिकों को प्रत्येक महीने की 7 और 22 तारीख को वेतन देने का प्रावधान है.
श्रमिकों का रोना है कि बागान प्रबंधन की ओर से कभी भी उन्हें समय पर भुगतान नहीं दिया गया. एक तरफ तो श्रमिकों की माली हालत दिन प्रतिदिन खस्ता होती जा रही है तो दूसरी तरफ विभिन्न राजनीतिक दल श्रमिकों की मांगों का राजनीतिक लाभ उठाने के लिए झूठ मुठ उनके साथ होने का नाटक रचाते हैं. इन राजनीतिक दलों में तृणमूल कांग्रेस, भाजपा, वाममोर्चा आदि श्रमिक संगठन शामिल हैं.
हालांकि विभिन्न पार्टियों के श्रमिक संगठनों की ओर से चाय बागान के श्रमिकों को उनका हक दिलाने के लिए आंदोलन किया जाता है परंतु इसका कोई असर नहीं होता. पूर्व के अनुभव कुछ ऐसा ही बताते हैं. ऐसे में चाय बागान के श्रमिक फटेहाली की कगार पर पहुंच चुके हैं. वर्तमान में उनके आंसू पोंछने वाला दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आता.