August 11, 2025
Sevoke Road, Siliguri
disaster alert weather westbengal

तबाही दस्तक दे रही है दार्जिलिंग और सिक्किम में!

Disaster is knocking at the door in Darjeeling and Sikkim!

दार्जिलिंग और सिक्किम लगातार बारिश व भूस्खलन की चपेट में हैं. सिक्किम के रास्ते बंद हैं. NH-10 क्षतिग्रस्त है. वैकल्पिक मार्ग भी कोई अच्छी स्थिति में नहीं है और मौसम विभाग की माने तो अगले एक हफ्ते तक समतल से लेकर पहाड़ी इलाकों में बारिश और भूस्खलन की स्थिति बनी हुई है. अगर पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश होती है तो भूस्खलन स्वतः होने लगता है.

पहाड़ी क्षेत्रों में बारिश और भूस्खलन होता है तो चारों तरफ त्राहि त्राहि मचने लगती है. प्रशासन त्वरित कार्यवाही करता है. हर प्रशासनिक विभाग चौकस नजर आता है और स्थिति का मुकाबला करने के लिए तैयार रहता है. इसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है. बरसों से यही सब देखा जा रहा है. किसी को भी स्थाई समाधान की चिंता नहीं है और यही स्थिति दार्जिलिंग और सिक्किम को रसातल में ले जा सकती है. उत्तराखंड में हुई तबाही ने सिक्किम और दार्जिलिंग को भी चेता दिया है. अगर नहीं संभले तो भविष्य में बहुत कुछ हो सकता है.

प्रकृति ने सिक्किम को बहुत पहले ही चेतावनी दे दी है, जब वर्ष 2023 में लहोनक झील फटने से यहां भयानक तबाही मची थी. तीस्ता नदी में अचानक आई बाढ में कई गांव, सड़क और पुल बह गये थे. उत्तरी सिक्किम तो एक तरह से विनाश के गर्त में पहुंच गया था. उत्तरी सिक्किम को संभलने में कई साल लग गए. इस विनाश लीला में कई लोग बह गए. कई लापता हो गए. कई लोगों की मृत्यु हो गई. इस घटना ने पहाड़ी क्षेत्रों को एक सबक दिया था. लेकिन चाहे आम आदमी हो या प्रशासनिक व्यक्ति, कोई भी स्थाई समाधान के लिए तत्पर नजर नहीं आता है.

एक ही तरीका अपनाया जाता है. जुगाड़ लगाओ और काम चलाओ. यानी मलबा हटाओ सड़क की मरम्मती करो और काम पर लग जाओ. मनुष्य की इस फितरत को अब उत्तराखंड में हुई तबाही ने चुनौती दे दी है और जैसे संदेश दे दिया है कि अब समय जुगाड़ लगाने और काम चलाने का नहीं रह गया है. अगर दार्जिलिंग और सिक्किम को बचाना है तो प्रशासन और आम जनता दोनों को मिलकर काम करना होगा.

दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय की गोद में बसे हैं.जो भौगोलिक स्थिति उत्तराखंड के उत्तरकाशी की है, वही स्थिति दार्जिलिंग और सिक्किम की भी है. दोनों प्राकृतिक सुंदरता और पर्यटन के लिए विश्व में प्रसिद्ध है. पर इसका दूसरा भौगोलिक पहलू काफी संवेदनशील है. सिक्किम में कई नदियां बहती हैं. इनमें तीस्ता प्रमुख है. तीस्ता के अलावा रंगीत, बालासन, महानदी, मेची और रानी खोला सहायक नदियां हैं. हर साल मानसून के दौरान यह सभी नदियां लबालब भर जाती हैं और बाढ़ तथा विनाश का कारण बनती हैं.

उत्तराखंड की खीर गंगा और भागीरथी नदियों की तरह ही दार्जिलिंग और सिक्किम की पहाड़ी नदियों के किनारे घनी बस्तियां बसी हुई है. वैज्ञानिकों ने पहले भी चेतावनी दी थी और अब उत्तराखंड की तबाही ने भी सिक्किम और दार्जिलिंग को संभलने का एक और मौका दे दिया है. इन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन, अवैज्ञानिक निर्माण और जंगलों की अवैध कटाई प्रमुख समस्याएं हैं. जिस तरह से बढती आबादी के अनुसार अवैध निर्माण कार्य चल रहा है और प्रशासन मौन धारण किए हुए है, यह चेताता है कि किसी भी समय प्रकृति यहां तबाही मचा सकती है.

पर्यावरण को लेकर काम करने वाले नैफ के कन्वेनर अनिमेष बोस भी मानते हैं कि सिक्किम और दार्जिलिंग में जलवायु परिवर्तन के साथ ही घने जंगलों की कटाई की गई है. सरकारी और निजी निर्माण से पहाड़ को क्षति पहुंची है.सिक्किम हो या दार्जिलिंग यहां के पहाड़ अपने आधार से खिसक रहे हैं. मिट्टी लगातार ढ़ीली पड़ रही है. यही कारण है कि यहां भूस्खलन की घटनाएं लगातार बढ़ रही है.

जब मानसून के दौरान रात दिन पानी बरसता है तो इससे पहाड़ की जड़ और कमजोर होती जाती है.मिट्टी हटने के बाद आधार कमजोर होने लगता है. परिणाम स्वरूप भूस्खलन की गति बढ़ जाती है. दूसरी तरफ तीस्ता और सहायक नदियां प्रलय धारण करके पहाड़ के बेस को और कमजोर करती जाती हैं, जिसके कारण भूस्खलन की घटनाएं बढ़ जाती हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि सिक्किम और दार्जिलिंग को बचाने के लिए स्थाई समाधान क्या है.

विशेषज्ञों ने बताया है कि यहां लोगों और प्रशासन को तीन क्षेत्रों पर काम करना होगा. पहले जागरूकता अभियान, दूसरा ऐसी नीतियों का निर्माण हो जो जलवायु अनुकूल हों.जैसे यहां इन इलाकों में जंगलों की अवैज्ञानिक कटाई पर रोक लगे. ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण अभियान चलाए जाएं. सरकारी प्रोजेक्ट जैसे जल विद्युत परियोजनाओं का पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन किया जाए. स्थानीय लोगों को यह बताया जाए कि पहाड़ की सुरक्षा के लिए वह क्या-क्या कर सकते हैं और सबसे ऊपर आपदा प्रबंधन व्यवस्था को सुदृढ़ करना है. एनडीआरएफ और एसडीआरएफ को और ज्यादा मजबूत बनाना होगा. इनमें प्रशिक्षित और अनुभवी लोगों को शामिल करना होगा. इसके अलावा आपातकालीन निकासी योजनाएं भी बनानी होगी. इन सभी उपायों से स्थाई समाधान की दिशा में धीरे-धीरे कदम रखा जा सकता है.

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