दार्जिलिंग की चाय न केवल भारत में ही बल्कि पूरे विश्व में विख्यात है. यह चाय सबसे महंगी बिकती है. लेकिन इसका स्वाद अद्वितीय रहता है. जिसके कारण ग्राहकों में इसकी भारी मांग हर समय रहती है.पर क्या आप बाजार में दार्जिलिंग की चाय ही खरीद पाते हैं? कहीं ऐसा तो नहीं है कि दार्जिलिंग टी के नाम नेपाल की चाय आपको दी जाती है और उसे ही आप दार्जिलिंग टी समझ बैठते हैं?
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो सिलीगुड़ी और पूरे उत्तर बंगाल में दार्जिलिंग की चाय कम और नेपाल की चाय अधिक बिक रही है. बाजारों में नेपाल की चाय की पहुंच के कारण दार्जिलिंग चाय उद्योग को भारी नुकसान पहुंच रहा है. कम वर्षा और बे मौसम बारिश के चलते उत्तर बंगाल का चाय उद्योग रुग्ण अवस्था से गुजर रहा है. ऊपर से नेपाल से चाय का भारी आयात 90% तक किए जाने के बाद दार्जिलिंग चाय उद्योग की हालत खस्ता हो चुकी है. इसका सभी क्षेत्रों में जैसे उत्पादन, चाय श्रमिक, निवेश, आमदनी इत्यादि पर भारी असर पड़ रहा है.
इंडियन टी एसोसिएशन ने गत 10 मई को दार्जिलिंग चाय उद्योग को बचाने के संबंध में केंद्र को पत्र लिखा है और वित्तीय सहायता की अपील की है. केंद्र को भेजे पत्र में कहा गया है कि चाय की पैदावार लगातार घट रही है. बाजार में इसकी कीमतें भी गिर रही है. कम वर्षा और प्रचंड गर्मी के चलते चाय की पत्तियां नष्ट हो रही हैं. संगठन ने केंद्र सरकार से आग्रह किया है कि मार्च 2022 में गठित वाणिज्य पर संसदीय स्थाई समिति की रिपोर्ट वित्तीय पुनरुद्धार पैकेज पर विचार किया जाए और इस पर शीघ्र कार्य किया जाए. अन्यथा भारतीय चाय उद्योग पर संकट बढ़ जाएगा.
इंडियन टी एसोसिएशन के अधिकारियों ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में चाय के उत्पादन में 7.52 मिलियन किलोग्राम कमी आई है. जबकि जनवरी से लेकर मार्च 2024 तक अखिल भारतीय स्तर पर इसकी पैदावार में 13 मिलियन किलोग्राम की कमी दर्ज की गई है. पत्र में कहा गया है कि अप्रैल 2023 से लेकर मार्च 2024 तक भारतीय नीलामी कीमतों में औसतन 14.81 रुपए प्रति किलोग्राम की कमी आई है. चाय उद्योग को संकट से उबरने के लिए अप्रैल 2023 में भारत ऑक्शन मॉडल बना था. लेकिन वह भी फेल हो चुका है. इसके बाद नवंबर 2023 में इंग्लिश मॉडल लाया गया.
जहां तक पश्चिम बंगाल में नीलामी कीमतों में गिरावट की बात है, तो 2023 -2024 में कोलकाता में 115 रुपए 58 पैसे प्रति किलो की कमी आई है. जबकि सिलीगुड़ी में 17 रुपए 42 पैसे प्रति किलो नीलामी में कमी दर्ज की गई है. नॉर्थ बंगाल इंडियन टी प्लांटर्स एसोसिएशन ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भी वित्तीय सहायता के लिए पत्र लिखा है. नेपाल से आयात की जा रही चाय पर सवाल खड़ा करते हुए यह कहा गया है कि बिना उचित परीक्षण के ही नेपाल की चाय को भारतीय बाजारों में बेचा जा रहा है.
इस बीच दार्जिलिंग टी एसोसिएशन ने आरोप लगाया है कि नेपाल से आयात की जा रही चाय दार्जिलिंग की चाय से अधिक सस्ती होती है. लेकिन फसाई के द्वारा इसकी जांच तक इंतजार नहीं किया जा रहा है और भारतीय बाजारों में पहुंचा दिया जाता है. नेपाल से पानी टंकी होकर चाय सिलीगुड़ी और उत्तर बंगाल में भेजी जाती है. कहा जा रहा है कि चाय परीक्षण का इंतजार किए बगैर ट्रकों को रवाना कर दिया जाता है. मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल की चाय और दार्जिलिंग की चाय को मिश्रित करके बाजार में बेचा जा रहा है, जिसे हम दार्जिलिंग की चाय मान बैठते हैं.
दावा किया जा रहा है कि अप्रैल महीने में 28 ट्रक नेपाल की चाय बिना किसी उचित जांच और परीक्षण के पानी टंकी सीमा से होते हुए भारत में भेजा गया. हालांकि पानी टंकी बॉर्डर पर ट्रकों को रोक कर चाय पत्ती का निरीक्षण जरूर किया गया है, पर उसकी फसाई रिपोर्ट आने तक इंतजार नहीं किया गया. इस तरह से दार्जिलिंग व उत्तर बंगाल का चाय उद्योग संकट में है. यही कारण है कि उत्तर बंगाल में एक-एक करके चाय उद्योग के कारखाने बंद हो रहे हैं. अगर केंद्र और संबंधित संस्थाओं के द्वारा दार्जिलिंग और उत्तर बंगाल के चाय उद्योग को बचाने की चेष्टा नहीं की गई तो यहां का चाय उद्योग इतिहास की बात बन जाएगा.
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