January 8, 2025
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लाइफस्टाइल

चीन को मुँहतोड़ जवाब देने के लिए सिक्किम में होगा फायरिंग रेंज का निर्माण !

एक कहावत आपने जरूर सुनी होगी. नहले पर दहला. अथवा वह चला डाल डाल, मैं चला पात पात! भारत और चीन का सीमा विवाद चलता रहता है. कभी कोई दो कदम आगे तो कभी दो कदम पीछे. अब तक ऐसा ही चलता रहा है. लेकिन चीन की चालाकी ऐसी है कि दो कदम पीछे चलकर वह फिर से दो कदम आगे निकल जाता है. वर्तमान में चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने और भारतीय क्षेत्र लद्दाख में नई काउंटी बनाने का फैसला किया है. भारत भी कैसे पीछे रहता. इसलिए भारत ने भी फैसला किया है कि सिक्किम में भारत चीन सीमा के योंगडी में 2000 मीटर की फायरिंग रेंज तैयार किया जाएगा अमल में लाई जाएगी. भारत सरकार ने इसकी मंजूरी दे दी है.

भारत सरकार के फैसले के बाद चीनी सैनिकों में खलबली मच गई है. कदाचित चीन ने भी नहीं सोचा था कि भारत इतना बड़ा कदम उठाएगा. भारत सरकार का यह फैसला चीनी सैनिकों के छक्के छुड़ा देगा. दरअसल योगांडी में बनने वाला फायरिंग रेंज 15000 फीट की ऊंचाई के साथ ही सबसे अधिक ऊंचाई वाला फायरिंग रेंज होगा. जो दुश्मन की एक-एक गतिविधि पर नजर रखने में सफल होगा. इसलिए सीमा पर चीनी सैनिकों के पसीने छूट रहे हैं.

फायरिंग रेंज का निर्माण उत्तरी सिक्किम के मंगन जिले में लाचेन नदी के तट पर किया जा रहा है. यह लगभग 87 हेक्टेयर वन क्षेत्र को प्रभावित करेगा. यह एक प्राकृतिक क्षेत्र है, जो लैटरल ग्लेशियर के पीछे हटने के कारण बना है. यह क्षेत्र दुश्मन की नजरों से प्राकृतिक रूप से सुरक्षा प्रदान करेगा. जहां पर इसका निर्माण चल रहा है अथवा किया जाना है, वह स्थान तीन तरफ से पहाड़ों से घिरा है. एक तरफ खुला भाग है. इसलिए अगर चीन की तरफ से फायरिंग की जाती है तो भारतीय सैनिक बचाव की स्थिति में होंगे.

भारत के हक में यह सब तरह से उपयुक्त है. भारतीय सैनिक दुश्मन की छाती को रौंदने में सफल तो होंगे ही, दुश्मन की गोलियों का बड़ी खूबसूरती से बचाव भी कर सकेंगे. यह क्षेत्र इतना लंबा है कि टैंक के गोले के पहाड़ों से टकराने की संभावना भी लगभग नहीं के बराबर है. प्राकृतिक नुकसान भी कम होगा. सीमा की सुरक्षा कर रहे भारतीय जवान और सशस्त्र बल काफी उत्साहित हैं. उत्तरी सिक्किम में भारी कैलिबर उपकरणों को शामिल किए जाने तथा चीन की सीमा की संवेदनशीलता के कारण सरकार का यह प्रयास काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है.

चीन को सही जवाब देने के लिए भारतीय सशस्त्र बल इसे ऑपरेशन जरूरत करार दे रहे हैं. क्योंकि वैसे भी यहां से उच्च क्षमता वाले उपकरण को हटाकर कहीं और ले जाना संभव नहीं लगता है. इससे गोपनीयता के साथ-साथ सैनिकों का परिश्रम भी बेकार जाएगा. चीन सीमा सटी हुई है और चीनी सैनिक सीमा पर ही बनाई गई बस्तियों मे डेरा डाले हुए हैं. इसलिए नई फायरिंग रेंज की उपयोगिता को समझा जा रहा है. यही कारण है कि सशस्त्र बल इसे ‘ऑपरेशन जरूरत’ बता रहे हैं. यहां फायरिंग रेंज बन जाने के बाद जवान अभ्यास करेंगे.

भारत सरकार ने फायरिंग रेंज की हरी झंडी तो दे दी है, परंतु कुछ सवाल भी उठ रहे हैं जो अत्यंत महत्वपूर्ण है. सबसे बड़ी समस्या पर्यावरण को लेकर होने वाली है. क्योंकि फायरिंग रेंज के आसपास अधिक ऊंचाई वाली कई झीले हैं जैसे ताशा चो, गोचुंग तसो, तसो टारॅन आदि झीलों के वजूद पर खतरा बढ़ सकता है. जानकार मानते हैं कि भारी कैलिबर उपकरणों की फायरिंग से नदी और झीलों में गाद का भार बढ़ेगा और जल निकासी पैटर्न को प्रभावित कर सकता है. केवल इतना ही नहीं पहाडों में कंपन होने से भी भूस्खलन का खतरा अत्यधिक बढ़ जाएगा. बहरहाल यह तो बाद की बात है. लेकिन फिलहाल भारत ने चीन की चाल और बदमाशी का करारा जवाब दिया है.

(अस्वीकरण : सभी फ़ोटो सिर्फ खबर में दिए जा रहे तथ्यों को सांकेतिक रूप से दर्शाने के लिए दिए गए है । इन फोटोज का इस खबर से कोई संबंध नहीं है। सभी फोटोज इंटरनेट से लिये गए है।)

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