May 8, 2024
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उत्तर बंगाल लाइफस्टाइल सिलीगुड़ी

मुनिवृंद का मंगल भावना समारोह !

सिलीगुड़ी: चातुर्मास की सम्पन्नता पर मंगल भावना समारोह को सम्बोधित करते हुए मुनि प्रशांत कुमार जी ने कहा- सिलीगुड़ी का ऐतिहासिक चातुर्मास सम्पन्न हो रहा है। पांच महीने अध्यात्म का ठाठ लगा रहा। तप, त्याग से जीवन महान बनता है। त्याग करने वाला केवल वस्तु का ही नही अपितु आसक्ति का भी त्याग करता है। त्याग से हमारी चेतना अन्तर्मुखी बनती है। वस्तु त्याग के साथ अपनी बुरी आदतों का भी परिहार करना चाहिए नकारात्मक भाव हमारे व्यवहार को प्रभावित करते हैं। चातुर्मास का समय आत्म जागरण का होता है। चारित्रआत्मा से प्रेरणा प्राप्त कर स्वाध्याय का अभ्यास करना चाहिए जिससे मौलिक एवं यर्थाथ ज्ञान का बोध हो सकें। ज्ञानाराधना से अज्ञान दूर होता है। ज्ञान के अभाव में अनेक भ्रांतिया पैदा हो जाती है। ज्ञान प्राप्त करने के बाद उसका जितना मनन किया जाता है, उतना ही भीतर में परिपक्कता आती है। साहित्य ग्रंथों में विशाल ज्ञान का भण्डार है। भारतीय साहित्य ने पाश्चात्य चिंतको को भी प्रभावित किया है। प्रत्येक श्रावक को अपनी जीवनचर्या में सामायिक साधना का अभ्यास करना चाहिए। श्रावक के बारहव्रत मे सामायिक व्रत का समावेश किया गया जिससे श्रावकत्व की अनुपालना हो सकें। सामायिक की शुद्ध पालना करने वाला अनन्त कर्मो का क्षय कर देता है। हमारे जीवन में अध्यात्म की भावना पुष्ट बने वैसी भावना करते रहें। सिलीगुड़ी का श्रावक समाज धर्मसंघ के प्रति समर्पित श्रद्धा, भक्ति-भावना से परिपूर्ण अध्यात्मनिष्ठ है।अपने जीवन में ओर अधिक धर्मनिष्ठ बनें। तेरापंथ सभा, युवक परिषद, महिला मण्डल, अणुव्रत समिति, टीपीएफ, तेरापंथ भवन ट्रस्ट, कन्या मण्डल, ज्ञानशाला सभी संस्थाओं के पदाधिकारी ने चातुर्मास मे भरपूर लाभ उठाने के साथ अपने दायित्व का अच्छे से निर्वाहन किया। सिलीगुड़ी के श्रावक समाज में श्रद्धा-भावना उत्साह अनूठा है। आप सब की धर्मनिष्ठ भावना सदैव बनी रहें। साधु-साध्वी की सेवा इसी जागरूकता के साथ करते रहें। यहां चातुर्मास कर हमें परम प्रसन्नता हो रही है। सबके प्रति मंगल भावना। सबसे खमतखामणा।
मुनि कुमुद कुमारजी ने कहा- नदी, हवा बादल एवं पंछी की तरह सन्तजन भी चलते रहते है। वे यायावर बनकर धर्म का बोध देते हैं। साधु श्रावक का जोड़ा होता है। साधु की साधना में श्रावक निमित बनता है तो श्रावक को धर्म का बोध साधु प्रदान करते हैं। चातुर्मास करने का उद्देश्य होता है ज्ञान, दर्शन, चरित्र एवं तप की साधना-आराधना विशेष रूप से हो। भाषणबाजी या मोमेंटो वितरण करना, बडे-बडे कार्यक्रमों का आयोजन से चातुर्मास सफल नही होता है। मुझे सात्विक गर्व है कि सिलीगुड़ी में इतने कार्यक्रम गुरु कृपा से सानन्द सम्पन्न हुए।

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